मध्यप्रदेश

चैत्र नवरात्रि 2023: झूला झुलाने से सूनी गोद भर देती हैं सात पहाड़ियों के बीच विराजमान मां शीतला, हर मुरादें करती हैं पूरी

Sanjay Patel
22 March 2023 7:25 AM GMT
चैत्र नवरात्रि 2023: झूला झुलाने से सूनी गोद भर देती हैं सात पहाड़ियों के बीच विराजमान मां शीतला, हर मुरादें करती हैं पूरी
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MP News: चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो चुका है। सात पहाड़ियों के बीच विराजमान मां शीतला के दरबार में भी भक्तों का सैलाब उमड़ने लगा है। श्रद्धा से यहां शीश झुकाने पर हर किसी की मनोकामना पूर्ण होती है।

चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो चुका है। सात पहाड़ियों के बीच विराजमान मां शीतला के दरबार में भी भक्तों का सैलाब उमड़ने लगा है। श्रद्धा से यहां शीश झुकाने पर हर किसी की मनोकामना पूर्ण होती है। यहां मां को झूला झुलाने से सूनी गोद भर जाती है ऐसी परम्परा वर्षों से चली आ रही है। वहीं पहाड़ी पर पत्थरों से प्रतीकात्मक मकान बनाने से लोगों के घरों का सपना भी मां शीतला पूरा करती हैं।

आइए जानते हैं मां शीतला का इतिहास

एमपी के ग्वालियर से लगभग 20 किलोमीटर दूर घने जंगल में सातऊ गांव की सात पहाड़ियों के बीच मां शीतला विराजमान हैं। वर्तमान समय पर मंदिर का प्रबंधन गजाधर बाबा की छठवीं पीढ़ी महंत कमल सिंह भगत संभाल रहे हैं। उनके मुताबिक माता के सबसे पहले भक्त उनके परदादा गजाधर बाबा थे। जो सातऊ गांव से होकर प्रतिदिन गायों को लेकर भिंड के गोहद स्थित खरौआ के जंगल जाया करते थे। जंगल में प्राचीन मंदिर में प्रतिदिन मां का अभिषेक गाय के ताजा दूध से किया करते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें कन्या रूप में सन् 1669 विक्रम संवत में दर्शन देने के साथ ही चलने के लिए कहा। महंत कमल सिंह बताते हैं कि इस पर उनके परदादा ने कहा कि उनके पास कोई साधन नहीं है वह उन्हें अपने साथ कैसे ले जा पाएंगे। जिस पर माता ने कहा कि जब वह उनका ध्यान करेंगे वह प्रकट हो जाएंगी। जिस पर गजाधर सातऊ गांव पहुंचे और माता का आह्वान किया। जिस पर माता प्रकट हो गईं और कहा कि जहां पर मैं विलुप्त हो जाऊं वहां पर मंदिर बनवाना। बताया जाता है कि मां कन्या रूप में सातऊ जंगल में जाकर विलुप्त हो गईं। जहां पर पांच पत्थर मिले थे। इन पत्थरों को समेटकर मां का स्वरूप प्रदान कर मां शीतला को पहाड़ी पर विराजमान किया।

पांच बीघा में फैल गया मंदिर परिसर

महंत कमल सिंह के मुताबिक लगभग 300 से 400 वर्ष पूर्व जहां पर मां विलुप्त हो गई थीं। वहां पर पहाड़ी स्थित एक पेड़ के नीचे मंदिर बनवाया गया। जिसके बाद मंदिर का विस्तार हो गया। भक्तों द्वारा मंदिर को जो चढ़ावा प्रदान किया जाता है उसी से मंदिर का विस्तार होता गया। इसके लिए किसी से चंदा लेने की जरूरत नहीं पड़ी। वर्तमान समय पर मंदिर पांच बीघा इलाके में फैला हुआ है जिसमें 250 कमरे हैं। नवरात्रि के समय यहां पर मां शीतला के पूजन अर्चन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है।

वर्षों से चली आ रही परम्परा

मां शीतला के दरबार में पहुंचने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। यहां झूला झुलाने से सूनी गोद भर जाती है ऐसी परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसके साथ ही जिस पहाड़ी पर मां विराजमान हैं वहां पर भक्त मां के दर्शन करने के बाद अपने सपनों का घर पत्थरों से बनाकर जाते हैं। कोई तीन मंजिल तो कोई दो मंजिल बनाकर जाता है। एक तरह से यह उनकी मां से मांगी गई कामना होती है। भक्तों की मन्नत पूरी होने पर वह जहां रहता है नंगे पैर ही मां के दर्शन के लिए निकल पड़ता है। शीतला माता के दर्शन के लिए प्रतिदिन एक से डेढ़ हजार लोग पहुंचते हैं। सोमवार को यहां पर मेला लगता है। जिसमें शामिल होने लगभग 20 से 25 हजार लोग पहुंचते हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहां पर भक्तों की संख्या बढ़कर एक लाख तक प्रतिदिन पहुंच जाती है।

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