मध्यप्रदेश

Sawan 2023: एमपी के दुर्द्धर्षेश्वर महादेव की महिमा अपरंपार, खोया राज्य दिलाते हैं वापस, बिछड़ों को मिला देते हैं

Sanjay Patel
3 Aug 2023 9:15 AM GMT
Sawan 2023: एमपी के दुर्द्धर्षेश्वर महादेव की महिमा अपरंपार, खोया राज्य दिलाते हैं वापस, बिछड़ों को मिला देते हैं
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MP News: मध्यप्रदेश के दुर्द्धर्षेश्वर महादेव की महिमा अपरंपार है। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन, स्पर्श करने और नाम का उच्चारण लेने मात्र से ही भक्त सहस्त्र ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है।

Sawan 2023: मध्यप्रदेश के दुर्द्धर्षेश्वर महादेव की महिमा अपरंपार है। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन, स्पर्श करने और नाम का उच्चारण लेने मात्र से ही भक्त सहस्त्र ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। इसके साथ ही उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल जाता है। ऐसे लोग जो बिछड़ गए हैं वह भी श्री दुर्द्धषेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करने से जल्द मिल जाते हैं।

सावन में उमड़ते हैं भक्त

एमपी के उज्जैन में शिप्रा नदी की छोटी रपट के पास गंधर्व घाट पर श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव का अत्यंत प्राचीन मंदिर स्थित है। पुरुषोत्तम मास में 84 महादेव के पूजन अर्चन का एक विशेष विधान है। यही वजह है कि यहां बड़ी संख्या में भक्तजन इन दिनों विशेष महत्व रखने वाले इन मंदिरों में पहुंच रहे हैं। यहां भक्त पूजन अर्चन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। 84 महादेव में 70वां स्थान रेखने वाले श्री दुर्द्धर्षेश्वर महाराज की महिमा अपरंपार है।

दुर्द्धर्षेश्वर महादेव मनोकामनाएं करते हैं पूर्ण

दुर्द्धर्षेश्वर महादेव मंदिर का मुख पश्चिम दिशा की ओर है। जिसके गर्भगृह में भगवान श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। मंदिर में भगवान की इस प्रतिमा के साथ ही माता पार्वती, कार्तिकेय, श्री गणेश और नंदी जी की प्रतिमा के साथ ही दो शंख तथा सूर्य चंद्र की आकृति दिखाई देती है। दुर्द्धर्षेश्वर महादेव का मुख उत्तर दिशा की ओर है। मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यदि चतुर्दशी के दिन इनका पूजन किया जाता है तो भक्तों की सभी मनाकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर के पुजारी पं. आशुतोष शास्त्री के अनुसार वैसे तो प्रतिदिन भगवान का पूजन अर्चना और जल चढ़ाने से विशेष लाभ मिलता है किंतु पूर्णिमा और अमावस्या पर मंदिर में काफी संख्या में श्रद्धालुजन पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं।

मंदिर का नाम राजा के नाम पर

स्कंद पुराण के अवंती खंड की कथा बताती है कि नेपाल में कुछ वर्षों पूर्व दुर्द्धुर्ष नाम के राजा हुआ करते थे। एक बार जब वह वन में घूम रहे थे तभी उन्हें अचानक एक कन्या पसंद आ गई। वह मन ही मन उस कन्या से विवाह करना चाहते थे। जिसके बाद उन्होंने कन्या की जानकारी निकाली और उसके बाद राजा कन्या के पिता तपस्वी कल्प के पास पहुंचे और उन्होंने अपने मन की बात कही। तपस्वी ने अपनी पुत्री और राजा दोनों की बात सुनने के बाद कन्या का विवाह कर उसे राजा को सौंप दिया। किंतु राजा पत्नी को अपने साथ महल ले जाने की बजाय उसे एक वन में ले जाकर विचरण कर रहे थे। उनको वन में इतना समय हो गया कि वह यह भूल गए कि वह किसी राज्य के राजा हैं और उनके न होने पर राज्य में क्या हो रहा होगा। राजा वन में पत्नी के साथ घूम ही रहे थे कि तभी एक दिन एक दैत्य ने राजा की पत्नी का हरण कर लिया। दैत्य काफी विशालकाय होने के कारण राजा पत्नी को नहीं बचा पाए वह केवल विलाप करते रह गए। राजा के इस दशा की जानकारी जब तपस्वी कल्प को हुई तो उन्होंने राजा को महाकाल वन उज्जैन में स्थित एक विशेष शिवलिंग की जानकारी देते हुए कहा कि हे राजन आप इस मंदिर में जाइए और यहां सच्चे मन से भगवान का पूजन अर्चन कीजिए। जिससे न केवल आपको खोई हुई पत्नी वापस मिल जाएगी बल्कि आपका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल जाएगा। राजा ने बताए गए शिवलिंग का पूजन किया जिससे उन्हें खोई हुई पत्नी वापस मिल गईं। इसके बाद उन्हें यह भी पता चल गया कि वह नेपाल राज्य के राजा हैं। जहां पर उनकी अन्य रानियां भी हैं। राजा के द्वारा किए गए पूजन अर्चन और तपस्या के कारण शिवलिंग का नाम राजा दुर्द्धुर्षु के नाम पर प्रसिद्ध हुआ। यहां के शिवलिंग को श्री दुर्द्धर्षेश्वर महादेव के नाम से पहचाना जाने लगा। जहां सवान के इन दिनों में काफी संख्या में भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं।

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