मध्यप्रदेश

एमपी विधानसभा चुनाव 2023 में आप के बाद 'बाप' की एंट्री, भाजपा-कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ेगी

Bharatiya Adivasi Party (BAP)
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भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है।

भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) इसी माह 10 सितम्बर को बनी यह पार्टी अब मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है।

भोपाल। जिस आदिवासी वोटबैंक पर प्रमुख राजनैतिक दल भाजपा और कांग्रेस आंखें गड़ाए हुए हैं, वहाँ 'जयस' और 'बाप' जैसी पार्टियों ने चुनावी मैदान में कूदने का एलान कर दिया है। इससे इन दलों के समीकरण गड़बड़ाने के आसार बढ़ रहे हैं। भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) पश्चिम मध्यप्रदेश की आदिवासी बाहुल्य सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है।

गौरतलब है कि पिछले नगरीय निकाय चुनाव में मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी (AAP) ने भाजपा और कांग्रेस का गणित बिगाड़ा था। जय आदिवासी युवा संगठन (जयस) भी अपने युवाओं को ज्यादा से ज्यादा विधानसभा भेजने अपने दम पर चुनाव लड़ने का कई बार एलान कर चुकी है। इसी क्रम में अब भारतीय आदिवासी पार्टी ने भी आने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी मौजूदगी की बात कही है।

भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) मूलतः राजस्थान की पार्टी बताई जा रही है, जिसका मध्यप्रदेश और गुजरात से सटे भील आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में प्रभाव अधिक है। आदिवासियों को उनके संवैधानिक हक दिलाने के उद्देश्य से इसी माह 10 सितम्बर को बनी यह पार्टी अब मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है।

बाप के प्रदेश ईकाई के अध्यक्ष ईश्वर गरवाल की माने तो विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी बाप झाबुआ, रतलाम, अलीराजपुर, धार, खरगोन और बड़बानी में आने वाली विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारेगी। गरवाल का कहना है कि उनकी पार्टी चाहती है कि संविधान में आदिवासियों को जो अधिकार दिए गए है, वे उन्हें मिले। इसके लिए बाप अपने अधिक से अधिक उम्मीदवारों को जिताकर विधानसभा भेजेगी और सरकार को बाध्य करेगी कि वह आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाएं।

गरवाल ने कहा कि पांचवीं और छठवीं अनुसूची में आदिवासियों के अधिकार को लेकर विस्तृत बात कही गई है, लेकिन राजनैतिक दल इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं ले रही है और आदिवासियों को सिर्फ वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

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