
- Home
- /
- मध्यप्रदेश
- /
- election 2018 : रीवा...
election 2018 : रीवा में 98 विधायकों के लिए हुए चुनाव, महज सात महिलाओं को मिला अवसर, जानिए आखिर क्या है वजह

रीवा. समाज में आधी आबादी का हिस्सा महिलाएं हैं, लोकतंत्र में इन्हें भी बराबर का दर्जा मिला है। विधानसभा के चुनावों में इनका खास प्रदर्शन नहीं रहा। आजादी के बाद से अब तक रीवा जिले में विधानसभा का सदस्य बनने के लिए 98 अवसर आए लेकिन इसमें महिलाओं को केवल सात बार ही जीत हासिल हुई। इन चुनाव में कई महिलाओं को टिकटें भी मिलती रहीं लेकिन वह जीत नहीं दर्ज करा पाई। आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था के शुरुआती दिन थे। उस समय महिलाएं राजनीति में बहुत कम हिस्सेदारी करती थी। समय बढ़ता गया, लोकतंत्र मजबूत हुआ, महिलाएं भी राजनीति में हिस्सेदारी के लिए आगे आईं लेकिन उन्हें अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिली। इसी वजह से सभी दल महिलाओं को नेतृत्व देने में पीछे हटते रहे हैं। विंध्य प्रदेश के दौर में महिलाओं को टिकट दिया गया लेकिन वह विधानसभा तक नहीं पहुंची। लोकतंत्र की इस व्यवस्था में भी पुरुषों की प्रधानता बनी रही। इनदिनों सभी दलों में महिला नेत्रियां हैं और उन्हें संगठन में अहम जिम्मेदारियां दी गई हैं लेकिन विधानसभा का टिकट मांगने जब वह पहुंचती हैं तो उनकी दावेदारी को कमजोर माना जाता है।
चंपा देवी तीन बार रहीं विधायक चंपा देवी ही जिले में अब तक की ऐसी सफल नेत्री रही हैं जिन्हें तीन बार विधानसभा का सदस्य बनने का अवसर मिला। सबसे पहले 1957 में उन्होंने सिरमौर सीट से यमुना प्रसाद शास्त्री जैसे दिग्गज को हराकर महिला नेतृत्व का डंका बजाया। इसके बाद 1980 और 1985 में वह मनगवां सीट से विधायक बनीं। इंदिरा गांधी से नजदीकी संबंध होने के चलते चंपा देवी इस क्षेत्र का नेतृत्व करती रही हैं, उस समय के नेता चाहते हुए भी उनका टिकट नहीं कटवा पाते थे। इनके बाद से कोई भी ऐसी महिला नेत्री सामने नहीं आई, जो दमदार नेतृत्व क्षेत्र को दे सके।
- ये रहीं अब तक जिले की विधायक १-सिरमौर- चंपादेवी 1957( कांग्रेस) २-मनगवां- चंपादेवी 1980, चंपादेवी 1985(कांग्रेस), पन्नाबाई 2008(भाजपा), शीला त्यागी 2013(बसपा)। ३- गुढ़- विद्यावती 1998 (बसपा)। ४- सेमरिया- नीलम मिश्रा 2013(भाजपा)
चार सीटों में अब तक महिलाओं को मौका नहीं रीवा जिले की चार ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां महिलाओं को अवसर नहीं मिला है। इसमें रीवा, देवतालाब, मऊगंज एवं त्योथर की विधानसभा सीटें हैं। जिसमें कभी भी महिलाएं विधायक नहीं बनी। कई बार भाजपा, कांग्रेस एवं अन्य दलों की ओर से टिकट भी महिलाओं को दिए गए लेकिन उसे जीत में बदलने में सफल नहीं हो पाई।
पारिवारिक विरासत का दो को अवसर मिला भाजपा की दो ऐसी महिला विधायक चुनाव जीती हैं जिन्हें पारिवारिक विरासत के रूप में सीट मिली। मनगवां से पन्नाबाई चुनाव जीतीं तो इसके पीछे उनके पति पंचूलाल प्रजापति का राजनीतिक कैरियर शामिल रहा है। पंचूलाल भाजपा की टिकट पर लगातार जीत दर्ज कराते रहे हैं। इसी तरह सेमरिया से पूर्व विधायक अभय मिश्रा की पत्नी नीलम मिश्रा को वर्ष 2013 में भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा। पति के सहयोग के चलते इन्हें भी विधायक बनने का अवसर मिला।
इनदिनों ये महिलाएं हैं प्रमुख दावेदार कांग्रेस- कविता पाण्डेय- प्रदेश महिला कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष हैं, रीवा विधानसभा से दावेदारी कर रही हैं। बबिता साकेत- जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं, बसपा छोड़ कांग्रेस में आई हंै। मनगवां से प्रमुख दावेदार हैं। प्रीती वर्मा- इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर लौटी हैं, मनगवां से दावा पेश किया है।
भाजपा- नीलम मिश्रा- सेमरिया से विधायक हैं, आगे भी पार्टी के साथ रहना चाहती हैं। पन्नाबाई- मनगवां की विधायक थीं, इस बार फिर टिकट की प्रबल दावेदार हैं। अंजू मिश्रा- बाल कल्याण आयोग की सदस्य रहीं, संगठन में कई दायित्व निभाए, मऊगंज से टिकट चाहती हैं। प्रज्ञा त्रिपाठी- पूर्व सांसद चंद्रमणि की बेटी हैं, सिरमौर से दावेदार हैं। माया सिंह- जिला पंचायत अध्यक्ष रही हैं, गुढ़ से टिकट चाहती हैं। विभा पटेल- जिला पंचायत उपाध्यक्ष हैं, देवतालाब से टिकट की दावेदार भी हैं।
बसपा- शीला त्यागी- मनगवां की विधायक हैं, पार्टी ने फिर टिकट दिया है। विद्यावती पटेल- पूर्व विधायक हैं, पार्टी का बड़ा चेहरा। देवतालाब से दावेदार थी टिकट नहीं मिला, गुढ़ या रीवा से भी चाहती हैं। सीमा सिंह- पार्टी ने देवतालाब से प्रत्याशी बनाया है।
