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Madhya Pradesh में यहाँ मनवांछित फल पाने पूजा-अर्चना के बाद दहकते अंगारों पर चलते हैं श्रद्धालु
![Devotees walk on burning embers after worshiping to get desired results here in MP Devotees walk on burning embers after worshiping to get desired results here in MP](https://www.rewariyasat.com/h-upload/2021/12/12/12362-devotees-walk-on-burning-embers-after-worshiping-to-get-desired-results-here-in-mp.webp)
Shrikhanderao Temple Madhya Pradesh History and Story: सागर जिले (Sagar District) के देवरी (deori) विकासखंड स्थित प्राचीन श्रीदेवखंडेराव मंदिर (Shrikhanderao Temple) में हर साल चंपा छठ से अग्निकुंड मेले की शुरूआत होती है। मेले की शुरूआत 9 दिसंबर से हो चुकी है जो 18 दिसंबर तक चलेगा। बताते हैं कि श्रीदेवखंडेराव मंदिर (Shrikhanderao Temple) से सच्चे मन से जो भी मनौती की जाती है उसके पूर्ण होने पर पीला वस्त्र धारण करते हुए श्रीदेव खंडेराव की पूजा अर्चना करने के बाद लोग अग्निकुंड के दहकते अंगारों से निकलते हैं।
हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु देवरी पहुंचते हैं और मेले में शामिल होते हैं। बताते हैं कि इस मंदिर में अपनी मनोकामना लेकर जो भी श्रद्धालु पहुंचता है उसे श्रीदेवखंडेराव मंदिर (Shrikhanderao Temple) में अपने बाएं हाथ में हल्दी लगाकर छापा बनाना होता है और मनोकामना पूर्ण हो जाय तब दाएं हाथ से छापा बनाना पड़ता है। तत्पश्चात अग्निदेव के समक्ष श्रीदेवखंडेराव की पूजा की जाती है। इसके बाद श्री देव का स्मरण करते हुए दहकते अंगारे से निकलते हैं।
ऐसी है मान्यता (Shrikhanderao Temple History)
बताया जाता है कि यह परम्परा लगभग 400 साल पुरानी है जो आज भी चली आ रही है। यहां मनोकामना पूर्ण होने लोग अग्निकुंड में दहकते अंगारों से निकलकर श्रीदेव खंडेराव का स्मरण करते हैं। बताया जाता है कि इलाके में यशवंतराव का आधिपत्य था। उनके इकलौते पुत्र किसी बीमारी से पीड़ित होकर मृत हो गये थे, तब राजा ने श्रीदेव खंडेराव से प्रार्थना कर रक्षा की याचना की थी।
तब रात में श्रीदेव खंडेराव ने राजा को दर्शन दिया और कहा कि तुम मेरे दर्शन कर बाएं हाथ हल्दी लगाकर प्रार्थना करो और एक आयताकार आकृति का कुंड बनाकर एक मन लकड़ी डालकर विधि विधान से पूजा करो और उसके बाद नंगे पैर आग पर चलो। ऐसा करने तुम्हारा बेटा ठीक हो जाएगा। राजा यशवंतराव ने वैसा ही और उनका बेटा स्वास्थ्य होकर जीवित हो गया। तभी ये परम्परा लगातार चली आ रही है।