मध्यप्रदेश

Jamni River: एमपी-यूपी बार्डर पर स्थित इस नदी का जल छिड़कने से फसलों में नहीं लगते रोग व कीड़े, कीटनाशक की नहीं पड़ती आवश्यकता

Sanjay Patel
16 Aug 2023 7:30 AM GMT
Jamni River: एमपी-यूपी बार्डर पर स्थित इस नदी का जल छिड़कने से फसलों में नहीं लगते रोग व कीड़े, कीटनाशक की नहीं पड़ती आवश्यकता
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MP News: मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर एक नदी स्थित है जिसका पानी अमृत से कम नहीं है। किसानों का दावा है कि इस नदी का पानी फसलों पर छिड़कने से उनमें रोग व कीड़े नहीं लगते। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।

Jamni River: मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर एक नदी स्थित है जिसका पानी अमृत से कम नहीं है। किसानों का दावा है कि इस नदी का पानी फसलों पर छिड़कने से उनमें रोग व कीड़े नहीं लगते। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। आज भी यहां लोग काफी संख्या में पहुंचते हैं और बोतल, केन, डिब्बों में नदी का जल भरकर ले जाते हैं।

फसलों को कीट व्याधि से बचाता है जामनी नदी का पानी

एमपी के टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर एमपी-यूपी बॉर्डर पर अजयपार है। इस स्थान को सिद्धबाबा का प्राचीन स्थान भी कहा जाता है। इसके समीप ही जामनी नदी की कल-कल करती हुई धारा बहती है। किसानों की ऐसी मान्यता है कि इस नदी का पानी फसलों पर छिड़का जाए तो इल्ली सहित कीट व्याधि का कोई दुष्प्रभाव फसलों पर नहीं रहता। पानी का छिड़काव फसलों पर करते ही कीड़े खेत से बाहर निकल जाते हैं। ऐसे में लोगों को कीटनाशक का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

सदियों पुरानी है ऐसी मान्यता

सदियों से ऐसी मान्यता है कि जामनी नदी का पानी फसलों पर छिड़कने से रोग व कीड़े नहीं लगते। आस्था और विश्वास के कारण किसान नदी में स्नान करने के बाद जल भरते हैं। नदी के पास बने सिद्ध बाबा के प्राचीन मंदिर में उसे चढ़ाते हैं। सिद्ध बाबा को चढ़ाया हुआ जल दोबारा अपने बर्तनों में भरकर किसान घर ले जाते हैं। सालों पुरानी यह मान्यता है यही वजह है कि किसान अजयपार मंदिर पानी लेने पहुंचते हैं। यहां साल में दो बार रबी और खरीफ फसलों की बोनी के बाद जब फसल में कीड़े लगने लगते हैं तो किसानों के पहुंचने का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है।

सिद्ध बाबा का मानते हैं चमत्कार

17 वर्षों से सिद्ध बाबा मंदिर में निवास कर रहे 24 वर्षीय प्रेमदास मौनी बाबा के मुताबिक यह स्थान काफी प्राचीन है। पिछले 16 वर्षों से वह यहां मौन व्रत धारण कर रहे हैं। एक वर्ष पूर्व ही उन्होंने मौन व्रत खोला है। मौनी बाबा का कहना है कि नदी का पानी सिद्ध बाबा को चढ़ाने के बाद फसलों पर छिड़का जाता है। ऐसा करने से फसलों में कीट व्याधि नहीं लगे। यहां दूर-दूर से किसान पहुंचते हैं और पानी भरकर फसलों पर छिड़कने के लिए ले जाते हैं। यहां टीकमगढ़, ललितपुर, सागर के अलावा समूचे बुंदेलखंड और कई प्रदेशों से किसान अजयपार से पानी भरकर ले जाते हैं।

खेत में तीन कोनों पर छिड़कते हैं पानी

एमपी-यूपी बॉर्डर पर स्थित अजयपार के सिद्ध बाबा मंदिर में पानी लेने पहुंचे लोगों का कहना है कि इस पानी को खेत के तीन कोनों पर छिड़का जाता है। एक कोने में पानी का छिड़काव नहीं किया जाता। ऐसे में फसलों पर जो भी कीड़े, इल्लियां आदि लगी रहती हैं वह छूटे हुए कोने से बाहर निकल जाती हैं। इसका उपयोग सब्जियों की फसलों पर भी किया जा सकता है। जिससे सब्जियां भी सुरक्षित रहती हैं।

घर का पानी भी इसमें मिला सकते हैं

किसानों का कहना है कि सिद्ध बाबा को चढ़ाए गए जल को केन या बोतल में भरकर घर ले जाते हैं। जिसमें पानी की मात्रा बढ़ाने के लिए इसमें घर का पानी भी मिला लेते हैं। इस पानी में घर का पानी मिलाने के बाद भी चमत्कारिक रूप से खेतों के कीड़े भाग जाते हैं। किसान इसको सिद्ध बाबा का चमत्कार मानते हैं। यहां पानी लेने पहुंचने वाले कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके द्वारा तीन पीढ़ियों से अजयपार के पानी का छिड़काव फसलों पर कर रहे हैं। कुछ लोग चर्म रोग हो जाने पर नदी में स्नान करने के लिए भी पहुंचते हैं।

क्या कहते हैं इतिहासकार?

इतिहासकारों की मानें तो अजयपार का पौराणिक महत्व भी है। यह घने जंगल के बीच स्थित है। जो तकरीबन 5 हजार वर्ष पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर बाणासुर भगवान शिव की पूजा और अभिषेक करता था। अजयपार स्थल के पास जामनी और जमडार नदी का संगम है। जिसको प्राचीन काल में अजय अपार कहा जाता था। ऐसा इसलिए कि यहां पर कभी भी पानी की मात्रा कम नहीं होती थी। यह स्थान घने जंगलों के बीच है जिसके कारण यहां कई गुणकारी औषधियां भी पाई जाती हैं। समय के साथ आसपास का जंगल ख्ेातों में बदल गया किंतु अभी भी नदी के किनारों पर कई औषधीय पौधे हैं।

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