मध्यप्रदेश

दलहन और तिलहन उत्पादन कर बुंदेलखंड के किसान बनेंगे धनवान, नहीं आडे़ आएगा जलसंकट

pulses farming
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बुंदेलखंड का किसान जलसंकट से जूझ रहा है। पानी की कमी से खेती करने में आ रही दिक्कत किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है।

बुंदेलखंड का किसान जलसंकट से जूझ रहा है। पानी की कमी से खेती करने में आ रही दिक्कत किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है। वही बुंदेलखंड के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इन हालातों में बेहतर विकल्प के रूप में दलहन और तिलहन की फसल है। अगर बुंदेलखंड का किसान दलहनी फसलों का उत्पादन शुरू करें तो वह कम पानी में ज्यादा पैदावार लेकर अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। वैसे भी देश में दलहनी फसलों की खेती मांग के अनुरूप नही हो रही है। ऐसे में बुंदेलखंड के किसानों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

कृषि वैज्ञानिकों की माने तो बुंदेलखंड का किसान अगर दलहन फसलों की खेती वैज्ञानिक तरीके से करें तो उसकी आय में इजाफा हो सकता है। क्योंकि बुंदेलखंड की मिट्टी और मौसम कम पानी वाले फसलों के लिए उपयुक्त है। साथ ही देश में दलहन फसलों का उत्पादन में तेजी आयेगी। वर्तमान समय में देश दलहन फसलों के लिए आत्मनिर्भर नहीं है। ऐसे में दाम कम होने की संभावना नहीं है। वहीं सरकार द्वारा दलहनी फसलें एमएसपी पर खरीदी की जा रही है।

किसान ऐसे करें तैयारी

वैज्ञानिकों का कहना है कि खरीफ फसल की बोनी के पूर्व किसान अपने खेतों को तैयार करें। बताया गया है कि रबी की फसल कटने के बाद खेतों की गहरी जुताई करें। इसके लिए प्लाऊ सबसे उपयुक्त है। प्लाऊ से जुताई करने पर लगभग 8 से 10 इंच तक गहरी जुताई हो जाती है। जो अरहर जैसी फसल के लिए उपयुक्त है।

बताया गया है कि दलहनी फसलों का पर्याप्त उत्पादन लेने के लिए रबी की कटाई के बाद खेतों की जुताई करें और कुछ दिनों पश्चात उसमें सनई और ढैचा नामक फसल की बोनी करें। इस फसल का उपयोग खेत तैयार करने में किया जाता है। बातया गया है कि जब सनई और ढैचा की पौधे कुछ बडे़ हो जाएं तो इसे जून के महीने में जुताई कर दें। ऐसा करने पर खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। क्योंकि सनई और ढैंचा से खेत को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश मिलता है।

समय पर करें बोनी

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि दलहन में पर्याप्त उत्पादन लेने के लिए जुलाई के शुरुआत में अरहर, मूंग, तेल और मक्का की बोनी कर देनी चाहिए। समय पर बोनी करने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि देर से तैयार होने वाली फसलों में पानी की कमी नहीं होगी।

यह है उन्नत किस्म के बीज

भरपूर उत्पादन के लिए उन्नत किस्म के बीजों का होना बहुत आवश्यक है। इसीलिए किसी वैज्ञानिक कहते हैं कि अरहर और मूंग की कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं। हमीरपुर जिले के नारायणपुर और हैलापुर अनुसंधान केंद्र कानपुर में कई उन्नत किस्म के बीज तैयार किए गए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि देसी अरहर, बहार अरहर, नारायण 7 अरहर और नारायण 9 अरहर नाम की किस्में विकसित की गई है। जिन से पर्याप्त उत्पादन होता है।

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