इंदौर

इंदौर के डीएवीवी की तीन वर्ष में होने वाली पीएचडी अब पांच साल में भी नहीं हो रही पूरी

Sanjay Patel
18 Dec 2022 7:26 AM GMT
इंदौर के डीएवीवी की तीन वर्ष में होने वाली पीएचडी अब पांच साल में भी नहीं हो रही पूरी
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देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (डीएवीवी) से पीएचडी करने वाले लोगों की उम्मीदों पर पानी फिरता जा रहा है। शोधार्थियों की परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही हैं।

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (डीएवीवी) से पीएचडी करने वाले लोगों की उम्मीदों पर पानी फिरता जा रहा है। शोधार्थियों की परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। सामान्य तौर पर तीन से साढ़े तीन साल में पीएचडी पूरी हो जानी चाहिए। लेकिन सिस्टम की खामियों, गाइड-शोधार्थियों के बीच विवाद एवं तालमेल की कमी के कारण पीएचडी पांच साल में भी पूरी नहीं हो पा रही है। जिससे शोधार्थी लगातार छह माह का एक्सटेंशन लेने विवश हैं।

150 शोधार्थियों की पीएचडी रुकी

डीएवीवी में तीन से साढ़े तीन साल में पीएचडी केवल 30 फीसदी शोधार्थी ही पूरी कर पा रहे हैं। अन्य शोधार्थी सिस्टम की खामियों के चलते पांच वर्ष में भी डिग्री पूरी नहीं कर पा रहे हैं। जिसका नुकसान यह हो रहा है कि सीटें तय समय पर खाली नहीं हो पा रही हैं। सूत्रों की मानें तो यहां लगभग 150 शोधार्थियों की पीएचडी रुकी हुई है। कई शोधार्थियों की पीएचडी गाइड के रिटायर होने के कारण अटक गई हैं तो कई की पीएचडी गाइड और स्कॉलर में सामंजस्य की कमी और विवाद इसकी वजह बताई जा रही है। बताया गया है कि दस शोधार्थी एक साल में गाइड तक बदल चुके हैं।

डीएवीवी के गाइड अलॉट करने के बाद बिगड़ी स्थिति

सूत्रों की मानें तो डीएवीवी में पहले शोधार्थी अपना खुद स्वयं चुनते थे। जिससे गाइड व शोधार्थी के बीच सामंजस्य बना रहता था। किंतु चार वर्ष पूर्व यूजीसी की नई गाइड लाइन के बाद विश्वविद्यालय खुद अपने स्तर पर गाइड अलॉट करने लगा। जिससे गाइड व शोधार्थी के बीच अक्सर तालमेल नहीं बन पाता और विवाद से पीएचडी अटक जाती है। कई शोधार्थियों द्वारा इस तरह के मामले भी सामने लाए गए जिसमें यह कहा गया कि गाइड सहयोग नहीं करते। बार-बार चक्कर लगवाते हैं। जो भी काम करें उसे गाइड खारिज कर देते हैं। ऐसे में शोधार्थियों और गाइड के बीच तालमेल नहीं बन पाने से समय पर पीएचडी पूरी नहीं हो पा रही है।

6 माह में जमा करनी होती है प्रोग्रेस रिपोर्ट

90 फीसदी शोधार्थी तय समय में प्रोग्रेस रिपोर्ट नहीं जमा कर रहे हैं जिसकी भी वजह पीएचडी की लेटलतीफी बताई जा रही है। सामान्य नियम यह है कि हर पीएचडी स्कॉलर को छह माह में विश्वविद्यालय में प्रोग्रेस रिपोर्ट जमा करनी होती है लेकिन ऐसा नहीं होने से पीएचडी के समय पर इसका असर पड़ रहा है। शिक्षाविदों की मानें तो कम से कम सिनोप्सेस ऑनलाइन जमा करने की सुविधा होनी चाहिए। कोर्स वर्क की छह माह की टाइम लिमिट तय है उसी तरह हर काम की टाइम लिमिट तय होनी चाहिए।

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