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Premature Births in India:भारत में समय से पहले जन्म और कम वजन वाले बच्चों की संख्या बढ़ी, चौंकाने वाले आंकड़े आए सामने

Premature Births
भारत के जनसांख्यिकीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण में बड़ा खुलासा: वायु प्रदूषण से बढ़ रहे समय से पहले जन्म और कम वज़न वाले बच्चे
भारत के जनसांख्यिकीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 में एक चिंताजनक स्थिति सामने आई है। इस सर्वे के अनुसार, देश में लगभग 13 प्रतिशत बच्चे समय से पहले पैदा हो रहे हैं, जबकि 17 प्रतिशत बच्चों का जन्म के समय वज़न मानक से कम होता है। इस सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि वायु प्रदूषण इन प्रतिकूल जन्म परिणामों का एक बड़ा कारण बन रहा है। यह रिपोर्ट भारत में जनस्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करती है।
प्रमुख संस्थानों ने किया सर्वे का गहन अध्ययन
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, मुंबई स्थित अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान, और ब्रिटेन व आयरलैंड के संस्थानों के शोधकर्ताओं ने मिलकर इस सर्वेक्षण का गहन अध्ययन किया है। उन्होंने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) और सुदूर संवेदी डेटा का विश्लेषण करके गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से प्रसव परिणामों पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तार से विश्लेषण किया।
समय से पहले जन्म वायु प्रदूषण, कम वज़न वाले बच्चे भारत में, वायु प्रदूषण के प्रभाव
शोध टीम ने पाया कि गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 (सूक्ष्म कण प्रदूषण) के अधिक संपर्क में रहने से जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चे पैदा होने की आशंका 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, और समय से पहले प्रसव की आशंका 70 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि वर्षा और तापमान जैसी जलवायु परिस्थितियाँ भी इन प्रतिकूल जन्म परिणामों से अधिक गहरा संबंध रखती हैं।
उत्तरी जिले ज़्यादा संवेदनशील: पीएम 2.5 का खतरा
स्वास्थ्य पत्रिका ‘पीएलओएस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ’ में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, भारत के उत्तरी जिलों में रहने वाले बच्चे परिवेशीय वायु प्रदूषण के प्रति ज़्यादा संवेदनशील हो सकते हैं। वातावरण में 2.5 माइक्रोन से भी छोटे व्यास वाले सूक्ष्म कण पदार्थ को पीएम 2.5 कहा जाता है, जिन्हें सबसे हानिकारक वायु प्रदूषक माना जाता है। जीवाश्म ईंधन और बायोमास के दहन को वातावरण में इनकी मौजूदगी के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, ऊपरी गंगा क्षेत्र, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य शामिल हैं, में पीएम 2.5 प्रदूषकों का स्तर अधिक है, जबकि देश के दक्षिणी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में इसका स्तर कम है।
समय से पहले जन्म और कम वज़न वाले बच्चों के मामले: राज्यों की स्थिति
अध्ययन के मुताबिक, समय से पहले जन्म के अधिक मामले उत्तरी राज्यों में देखे गए हैं, जैसे:
- हिमाचल प्रदेश (39 प्रतिशत)
- उत्तराखंड (27 प्रतिशत)
- राजस्थान (18 प्रतिशत)
- दिल्ली (17 प्रतिशत)
इसके विपरीत, मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा में समय पूर्व बच्चों के जन्म के सबसे कम मामले सामने आए हैं।
वहीं, जन्म के समय मानक से कम वज़न वाले बच्चों के सबसे अधिक मामले जिन राज्यों में पाए गए वे हैं:
- पंजाब (22 प्रतिशत)
- दिल्ली
- दादरा और नगर हवेली
- मध्य प्रदेश
- हरियाणा
- उत्तर प्रदेश
शोधपत्र लेखकों ने बताया कि इस मानदंड पर पूर्वोत्तर भारत के राज्यों का प्रदर्शन कहीं बेहतर है।
अध्ययन का महत्व और 'स्वच्छ वायु कार्यक्रम' की मांग
शोधकर्ताओं ने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और कंप्यूटर आधारित भौगोलिक आकलन से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग करके यह अध्ययन किया गया। गर्भावस्था में वायु प्रदूषण के संपर्क और जन्म परिणामों के बीच संबंध को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न सांख्यिकीय विश्लेषण और स्थानिक मॉडलों का भी उपयोग किया गया है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस सर्वेक्षण में यह पाया गया कि लगभग 13 प्रतिशत बच्चे समय से पहले पैदा हुए और 17 प्रतिशत बच्चे कम वज़न के साथ पैदा हुए। इसके अलावा, पीएम 2.5 के स्तर में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से कम वज़न वाले बच्चों के जन्म की आशंका पांच प्रतिशत और समय से पहले जन्म की आशंका 12 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की पाँच वर्ष की अवधि में पैदा हुए 18 प्रतिशत बच्चों का वज़न जन्म के समय कम था।
इन गंभीर निष्कर्षों के आधार पर, शोधकर्ताओं ने देश में, खासकर उत्तरी राज्यों में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) को तेज़ करने की मांग की है। यह कार्यक्रम, जो 2019 में शुरू किया गया था, भारत में वायु गुणवत्ता को सुधारने और पीएम प्रदूषकों के स्तरों को नियंत्रित करने पर केंद्रित है।




