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पुलिस FIR दर्ज करने से मना करे तो क्या करें? जानिए आम आदमी का अधिकार...

पुलिस FIR दर्ज करने से मना करे तो क्या करें? जानिए आम आदमी का अधिकार...
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अक्सर देखा जाता है कि पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट यानि FIR दर्ज करने में आनाकानी करती है या मना कर देती है या फिर पैसे की मांग करती है, ऐसे में आम आदमी को क्या करना चाहिए? आज हम आपको इस बारे में पूरी जानकारी दे रहें हैं...

अक्सर देखा जाता है कि पुलिस शिकायत करने के बावजूद भी प्रथम सूचना रिपोर्ट यानि FIR दर्ज करने में आनाकानी करती है या मना कर देती है या फिर पैसे की मांग करती है। अगर पहुंच वाले हैं तो फिर एफ़आईआर दर्ज कर ली जाती है, लेकिन आम आदमी है तो उसे FIR दर्ज कराने के लिए दर-दर भटकना पड़ता है।

ऐसे में आम आदमी को क्या करना चाहिए? आज हम आपको इस बारे में पूरी जानकारी दे रहें हैं, जिसमें आप FIR से जुड़ी हर बात को बारीकी से जान सकेंगे...

पहले जानिए FIR क्या होती है?

FIR का फुल फार्म होता है 'फ़र्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट'। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (CrPC 1973) के सेक्शन 154 में एफ़आईआर का जिक्र किया गया है। किसी भी तरह की क्राइम से जुड़ी घटना के संबंध में पुलिस के पास कार्रवाई के लिए दर्ज की गई पहली सूचना को प्राथमिकी या फ़र्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट या FIR कहा जाता है।

पुलिस थाना में FIR कैसे दर्ज कराएं?

पुलिस थाना में FIR दर्ज कराने के लिए आपको संबन्धित थाना में एक शिकायत पत्र देना होगा, साथ ही मौखिक तौर पर भी आपको जानकारी देनी होगी। जरूरी नहीं है कि एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए आपको थाना ही जाना पड़े, कई राज्यों में यह प्रक्रिया ऑनलाइन उपलब्ध है, आप ऑनलाइन भी एफ़आईआर दर्ज कराने की प्रक्रिया कर सकते हैं।

FIR दर्ज होने के बाद क्या होता है?

CrPC की धारा 157(1) के अनुसार, पुलिस को प्राथमिकी दर्ज कर एफ़आईआर की रिपोर्ट जिले या संबंधित मजिस्ट्रेट तक 24 घंटे के अंदर भेज देनी चाहिए।

FIR की जरूरत क्या है?

देश में हर नागरिक को शिकायत के तौर पर FIR दर्ज कराने का अधिकार प्राप्त है। कहीं भी संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offence हो रहा है, तो ऐसे में रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद ही पुलिस छानबीन कर सकती है।

संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offence क्या है?

संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offence का जिक्र क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC 1973) की धारा 2(C) और 2(L) में किया गया है। धारा 2(C) के मुताबिक, ऐसा अपराध, जिसमें पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है, वह संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offence है।

CrPC 1973 के शेड्यूल 1 में संज्ञेय अपराध की पूरी लिस्ट दी गई है। जिसके अनुसार इस अपराध में बलात्कार, देशद्रोह, हत्या, रिश्वत, अपहरण, दंगा, हथियार से लैस होकर अपराध करना, पब्लिक सर्वेंट अगर रिश्वत ले रहा है, फर्जी पब्लिक सर्वेंट बनकर जनता को कोई बेवकूफ बना रहा है और अगर कोई योजना बनाकर गैरकानूनी काम कर रहा है ये सब शामिल हैं।

FIR दर्ज करने का मामला अगर झूठा निकला, तब क्या होगा?

कभी भी झूठे मामलों की रिपोर्ट करने पर आपके खिलाफ भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 182 और 211 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

FIR दर्ज करवाते वक्त
इन बातों का विशेष ध्यान रखें...

  1. व्यक्ति वारदात, घटना या अपराध की जानकारी बोलकर और लिखकर पुलिस को देना ।
  2. अगर लिखना नहीं जानते तब पुलिस इसे लिखेगी। पुलिस आपकी दी हुई जानकारी को लिखकर आपको सुनाएगी।
  3. इस लिखित शिकायत पर आपका सिग्नेचर करना जरूरी है।
  4. जो लोग सिग्नेचर नहीं कर सकते हैं, वे अंगूठे के निशान लगाएंगे।
  5. अंगूठे के निशान भी तभी लगाएं जब पुलिस की लिखी जानकारी ठीक वैसी ही हो, जैसी आपने बताई है।
  6. पुलिस तोड़-मरोड़कर आपकी बात या तथ्यों को नहीं लिख सकती है।
  7. FIR दर्ज करने के बाद उसकी एक कॉपी पुलिस आपको देगी।
  8. FIR की कॉपी देने के लिए पुलिस आपसे कोई रकम नहीं मांग सकती।
  9. पुलिस FIR की कॉपी आपको देने से मना नहीं कर सकती है।

FIR में क्या-क्या लिखा जाता है?

  1. FIR लिखते या लिखवाते वक्त उसमें बारीक से बारीक डिटेल होनी चाहिए, जैसे– अपराध के वक्त चांदनी रात थी या अंधेरा था। लैंप पोस्ट वहां आसपास था कि नहीं। अगर था तो उसकी रोशनी कितनी दूर तक की थी।
  2. घटना की तारीख, समय, जगह और आरोपी की पहचान (अगर उसे जानते-पहचानते हैं तब) उसमें होना चाहिए।
  3. इसमें घटना के सही तथ्य और घटना में शामिल व्यक्तियों के नाम और डिटेल शामिल होने चाहिए।
  4. गवाहों (यदि कोई हो) के नाम भी पुलिस को उनकी जांच में मदद करने के लिए दिए जाने चाहिए।
  5. गलत जानकारी न दें, IPC, 1860 के सेक्‍शन 203 के तहत आप पर कार्रवाई हो सकती है।
  6. FIR में कोई भी बयान ऐसा न दें, जिसके बारे में आप खुद ही क्लियर नहीं हैं।

ऑनलाइन FIR दर्ज कराने के लिए इन स्टेप्स को करें फॉलो

  • अपने शहर या राज्य के पुलिस पोर्टल में अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। दिल्ली के उदाहरण से समझते हैं... जैसे– delhipolice.gov.in पर लॉग इन करें और नीचे स्क्रॉल करें।
  • यहां आपको Citizen Service का ऑप्शन दिखेगा।
  • इसके बाद Complaint Lodging, MV theft e-FIR, Theft e-FIR, Economic And Cyber offenses, Missing person report, Lost and Found आदि जैसे ऑप्शन मिलेंगे। इन ऑप्शन को चुनकर क्लिक करें।
  • अगले पेज पर, अपना यूजर आईडी और फोन नंबर दर्ज करना होगा।
  • अगर LogIn आईडी और पासवर्ड पहले से नहीं है, तो जनरेट करना होगा।
  • मोबाइल नंबर डालकर वन टाइम OTP जनरेट भी कर सकते हैं।
  • लास्ट में सारी डिटेल भरने के बाद आप शिकायत दर्ज कर पाएंगे।
  • FIR की एक कॉपी आपके रजिस्टर्ड ईमेल अकाउंट पर भेजी जाएगी।

जीरो FIR क्या है?

  • जीरो FIR वो होती है जिसे अपराध होने पर किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज करवा सकते हैं। लेकिन ज्यादातर देखा गया है कि पुलिस इसे दर्ज करने से मना कर देती है।
  • CrPC के सेक्शन 154 में जिक्र है। चूंकि इसमें कोई भी क्राइम नहीं लिखा जाता इसलिए ही इसे जीरो FIR कहते हैं।
  • इस मामले में इंस्पेक्टर या सीनियर इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी एक फॉरवर्डिंग लेटर लिखेगा और एक सिपाही उस लेटर को उस पुलिस स्टेशन में लेकर जाएगा जहां का वो केस होगा।
  • इसके बाद उस केस में आगे की जांच शुरू की जाएगी।

पुलिस FIR दर्ज न करे तब किसी व्यक्ति के पास क्या ऑप्शन है?

  • सीधे पुलिस सुपरिटेंडेंट (SP) या इससे ऊपर डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (DIG) और इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (IG) से शिकायत कर सकते हैं।
  • इन अधिकारियों को अपनी शिकायत लिखित रूप में खुद ऑफिस जाकर देना चाहिए। जो लोग शहर के बाहर हैं या जिन्हें लगता है कि FIR करने गए तो उनकी दिक्कतें बढ़ जाएगी तो वे इसे पोस्ट के जरिए भेज सकते हैं।
  • कई राज्यों में CM helpline नंबर मौजूद है। आप अपने राज्य के CM तक यह बात पहुंचाना चाहते हैं तो CM helpline नंबर पर शिकायत करें।
  • अगर महिला के साथ अपराध हुआ है तो वो FIR दर्ज न होने पर महिला आयोग को इसकी सूचना दे सकती है।
  • इन सबसे भी अगर कोई असर नहीं हुआ तब सीधे कोर्ट में 156 (3) के तहत शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
Aaryan Puneet Dwivedi | रीवा रियासत

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