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Story Of Vishpala: विश्पला, वैदिक काल की ऐसी वीरांगना जिसकी एक टांग लोहे से बनी थी, ऋग्वेद में लिखा है

Story Of Vishpala: विश्पला, वैदिक काल की ऐसी वीरांगना जिसकी एक टांग लोहे से बनी थी, ऋग्वेद में लिखा है
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Story Of Vishpala: ऐसा कहा जाता है घोड़े के सिर वाले दो जुड़वा अश्विन भाइयों ने विश्पला को लोहे का पैर उपहार में दिया था

Story Of Vishpala: भारत का इतिहास बहुत विशाल है, और यही इसकी खासियत और बदनसीबी भी हैं क्योंकी बहुतायत लोगों को भारत के इतिहास के बारे में ज्ञान नहीं है. आज हम आपको वैदिक काल के इतिहास में लेकर जा रहे हैं जहां एक ऐसी वीरांगना हुआ करती थी जिसकी एक टांग लोहे से बनी थी. युद्ध लड़ते वक़्त उस योद्धा की टांग कट गई थी जिसके बाद उसे 'प्रोस्थेटिक लेग' यानी के नकली टांग भेंट में दी गई थी. उस वीरांगना का विवरण ऋग्वेद में मिलता है।


ऋग्वेद की विश्पला की कहानी: यह उस वक़्त की बात है जब बाकी दुनिया में सिर्फ बर्बर राज हुआ करता था, जब दुनिया के अन्य 'होमोसेपियंस' मतलब 'मानव' पत्थर से औजार बनाते थे तब भारत बाकी दुनिया से विज्ञान और तकनीक के मामले में बहुत आगे हुआ करता था। भारत में आज से हज़ारों साल पहले नकली टांग लगाने की तकनीक थी, तभी तो उस वीरांगना को घायल होने के बाद लोहे की नकली टांग दी गई थी और वह उसी के दम पर युद्ध लड़ने जाती थी.


हम बात कर रहे हैं विश्पला की. वह वीरांगना जिसकी एक टांग लोहे की थी, ज्यादातर लोगों को विश्पला के बारे में इसी लिए नहीं मालूम क्योंकि देश के सिर्फ कुछ राज्यों की कुछ स्कूलों में विश्पला का पाठ क्लास 9 वीं भर में ही पढ़ाया गया था वो भी संस्कृत में. हिंदी में आपने हामिद और उसके चिमटे की कहानी पढ़ी होगी और आपको याद भी होगी लेकिन संस्कृत की कहानी कहां याद रहती है. इसी लिए विश्पला के बारे में लोगों को मालूम नहीं है।

कौन थी विश्पला (Who Was Vishpala)

आज से करीब 3200 साल पहले मतलब 1200 BC में भारत में विश्पला नाम की वीरांगना थी, वह एक योद्धा और अपने साम्राज्य की रानी थी. वह दुनिया की पहली इंसान थी जिसकी एक टांग नकली थी. विश्पला की कहानी ऋग्वेद से पता चलती है. ऋग्वेद के (RV 1.112.10, 116.15, 117.11, 118.8 and RV 10.39.8).में विश्पला की कहानी का उल्लेख मिलता है।

विश्पला की कहानी (Story Of Vishpala)

विश्पला एक आर्शम में पली बढ़ी थी, जहां उसने गुरुओं से युद्ध कला बचपन में ही सीख ली थी, उस बच्ची को यह तक मालूम नहीं था कि वो कौन है, कहां से आई है उसके माता-पिता कौन थे. उन्होंने पष्यूमिन ऋषि के संरक्षण में रहकर अपने भाग्य की तयारी की थी.

विश्पला अपनी मंजिल की तलाश करते हुए अस्तिकानीर राज्य पहुंच गई, जहां विश्पला का विवाह 'खेलराज' नामक राजा के साथ हुआ था. खेलराज पराक्रमी राजा था और विश्पला भी शक्तिशाली योद्धा थी. एक बार दुश्मन ने खेलराज के राज्य में हमला कर दिया, दोनों शासकों के बीच महायुद्ध छिड़ गया. खेलराज को युद्ध मैदान में देख विश्पला भी जंग में उतर गई, विश्पला ने ऐसा युद्द किया जैसे स्वयं चामुंडा देवी धरती में दुश्मनों का विनाश कर रही हैं.

दुश्मनों के लिए विश्पला से जंग जितना मुश्किल हो रहा था, तभी सैनिकों के झुंड ने मिलकर विश्पला पर हमला किया और इसी दौरान उनका एक पैर कट गया. पैर कटने के कारण विश्पला युद्ध नहीं लड़ सकती थी. विश्पला फिर भी युद्ध करना चाहती थी.

विश्पला ने यज्ञ किया


जंग में पैर कटने के बाद भी विश्पला को युद्ध में हिस्सा लेना था, इस लिए उसने अश्वमेघ यज्ञ किया। उसने 2 अश्विनी कुमारों की तपस्या की, अश्वनी कुमार ऐसे देवता थे जिनका शरीर इंसान की तरह था लेकिन सिर घोड़े के जैसा। ऋग्वेद में लिखा है कि अश्विनी कुमार के 2 जुड़वाँ देवता जिनका सिर अश्व मतलब घोड़े का है वह अपने सोने के रथ से हवा में उड़ते रहते थे और असहाय लोगों की मदद करते थे. अश्विनी कुमार के दोनों जुड़वाँ भाई दयालु और भोले थे. विश्पला की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने विश्पला को एक लोहे का पैर उपहार में दिया था. ताकी वह लड़ाई में भाग ले सके.

फिर क्या हुआ

विश्पला को अश्विन कुमारों ने जो लोहे का पैर उपहार में दिया था उसके दम पर विश्पला दोबारा जंग के मैदान में उतरी, विश्पला को देख दुश्मन भयभीत और आश्चर्य चकित रह गए. विश्पला ने हज़ारों सैनिकों को मार गिराया था. विश्पला के साहस और उसकी नकली लोहे की टांग के बाद युद्ध लड़ने की कहानी ऋग्वेद में उल्लेखित की गई है।

मॉरल ऑफ़ द स्टोरी क्या है?

इस कहानी के पीछे के विज्ञान को समझिये भारत प्राचीन इतिहास के कितना एडवांस था, वैसे तो प्रोस्थेटिक लेग का अविष्कार 18 वीं शताब्दी का माना जाता है. लेकिन असलियत यह है कि भारत में यह तकनीक और उपचार वैदिल काल से पहले से मौजूद था।

जब बाकी दुनिया के लोगों के पास भाषा ही नहीं थी तब उस काल में भारत के ऋषि-मुनि और विद्वान ग्रथं और वेद लिखा करते थे. और आज सभ्य समाज उन वेदों को काल्पनिक, मिथक, माइथॉलजी कहता है.


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