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Birsa Munda Jayanti 15 November 2022: जानें महान बिरसा मुंडा की कहानी के बारे में

Birsa Munda Jayanti 15 November 2022: जानें महान बिरसा मुंडा की कहानी के बारे में
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Birsa Munda Jayanti 15 November 2022, Birsa Munda History, Birsa Munda Ki Kahani:15 नवंबर को खासकर मध्यप्रदेश में और पूरे देश में में बिरसा मुंडा की याद में जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है

Birsa Munda Jayanti 15 November 2022, Birsa Munda History, Birsa Munda Ki Kahani: जंगल-जमीन के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले बिरसा मुंडा की याद में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है। देश की राजनितिक पार्टियां खासकर भाजपा बिरसा मुंडा को भगवान कह कर पुकारती है. वहीं मुंडा जाति के लोग बिरसा मुंडा को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की 147 वीं जयंती मनाई जाएगी।


क्रूर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने वाले आदिवासियों के लोक नायक बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1857 में झारखंड के रांची जिले के इलीहतु गाँव में हुआ था। जब वो सिर्फ 25 साल के थे तब वो अंग्रेजों से स्वतंत्रता और अपने हक़ की लड़ाई के दौरन शहीद हो गए थे। बिरसा आदिवासियों को फिरंगी शासन से मुक्त होकर सम्मान से जीने के लिए प्रेरित करते थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी बिरसा मुंडा का अहम योगदान रहा है।

बिरसा बन गए थे डेविड

बिरसा मुंडा एक आदिवासी तबके से संबध रखते थे उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माँ का नाम करमी हटू था। वो बेहद गरीब थे और घुमन्तु खेती से अपना घर चलाते थे। बिरसा को बासुरी और कद्दू से बने एक तारा को बजाना काफी पसंद था। बिरसा को पढ़ाने के लिए उनके माता-पिता ने उन्हें उनके मामा के पास अयुबत्तू गाँव भेज दिया। बिरसा पढ़ने में काफी अच्छे थे उनकी पठाई देकर एक शिक्षक ने उन्हें क्रिश्चन स्कूल में दाखिला लेने का मश्वरा दिया। उस वक़्त क्रिश्चन स्कूल में सिर्फ ईसाई बच्चे ही पढ़ते थे, स्कूल में पढ़ने के लिए बिरसा ने ईसाई धर्म अपना लिया और अपना नाम डेविड रख दिया।

बाद में ईसाई धर्म परिवर्तन का विरोध करने लगे


बिरसा ने ईसाई स्कूल से पढाई छोड़ने के बाद हिन्दू धर्म के प्रभाव में आ गये, इसके बाद वह खुद ईसाई धर्म परिवर्तन का विरोध करने के लिए आदिवासियों में जागरूकता फैलाने लगे. उस दौर में ईसाई लोग भोलेभाले आदिवासियों को बेहला-फुसला कर ईसाई धर्म में परिवर्तित कर रहे थे। अंग्रेज भी आदिवासियों को ईसाई बनाने के लिए मजबूर कर रहे थे, उनका शारीरिक और चारित्रिक शोषण करते थे। बिरसा ने आदिवासियों को ईसाई बनने से ना सिर्फ रोका बल्कि गौ हत्या का विरोध किया।

जब खुद को कहा भगवान विष्णु का अवतार


साल 1895 में बिरसा मुंडा को लगा की उनके अंदर अलौकिक ईश्वरीय शक्तियां हैं और उन्होंने खुद को ही भगवान विष्णु का अवतार घोषित कर दिया, उस वक़्त आदिवासी उन्हें भगवान की भांति पूजने लगे, बिरसा एक अच्छे नेता थे लोग उनकी बातों से प्रभावित हो रहे थे। जो लोग ईसाई धर्म में चले गए थे वो वापस हिन्दू धर्म में आने लगे. आदिवासियों ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया।

फिरंगियों को नाकों तले चने चबवा दिए थे


बिरसा मुंडा अंग्रेजों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुके थे। साल 1897 से लेकर 1900 तक बिरसा और मुंडा आदिवासियों ने अंग्रेजों को नाकों तले चने चबवा दिए थे। 1897 में बिरसा मुंडा सहित उनके 400 आदिवासी सैनिकों ने तीर कमानों से खूंटी थाने में धावा बोल दिया था। लगान माफ़ी के लिए बिरसा ने खूब आंदोलन किया था।

जब गिरफ्तार हुए बिरसा


1898 में तांगा नदी के किनारे बिरसा ने अंग्रेजी सेना पर हमला कर दिया था, और अंग्रेजों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था, बाद में कई आदिवासियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और धीरे-धीरे बिरसा की सेना कमजोर पड़ने लगी। साल 3 फरवरी 1900 को अंग्रेजी सेना ने बिरसा और उनके समर्थकों को जंगल से गिरफ्तार कर लिया था।

बिरसा की मौत आज भी विवादित


9 जून 1990 के दिन बिरसा मुंडा की संदेहास्पद मृत्यु हो गई। जेल में रहने के दौरान ही उनके प्राण छूट गए, अंग्रेजों ने बताया बिरसा की मौत हैजा के काऱण हुई लेकिन यह अभी भी एक राज़ है कि आखिर बिरसा की मौत कैसे हुई। सिर्फ 25 साल की उम्र में बिरसा मुंडा शहीद हो गए लेकिन उनकी मौत ने आदिवासियों सहित देश के स्वतंत्रता सैनानियों के अंदर आज़ादी पाने का जोश भर दिया। बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई जमींदारी और राजस्व व्यवस्था के खिलाफ तो लड़ाई लड़ी ही साथ ही उन्होंने जंगल और जमीन की रक्षा करने के लिए अंग्रेजों से युद्द किया । बिरसा ने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का एलान किया था।

जिसे सब भगवान कहते हैं उनकी परपोती सब्जी बेचती है


चाहें भाजपा हो या कांग्रेस या कोई भी ऐसा दल जो आदिवासियों को लुभाने के लिए बड़ी-बड़ी डींगे हकता है, और वोट बैंक की राजनीती के चलते आदिवासियों को प्राथमिकता देने का दिखावा करता है, लेकिन आज भी आदिवासी समाज हम सब से काफी पीछे हैं। जिस बिरसा मुंडा की याद में जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है उनकी मूर्तिओं को सजाया जाता है, करोडो रुपए खर्च करके कार्यक्रम आयोजित किया जाता है और भगवान कहा जाता है, उनकी परपोती अपना घर चालाने के लिए सब्जी बेचती है। जी हाँ आपने सही सुना भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा की परपोती सब्जी बेचती है। और मुंडा के नाम पर राजनीती करने वालों को काजू-बादाम का भोग चढ़ता है। झारखण्ड के खूंटी बाजारटांड़ में जैनी मुंडा नामक एक सब्जी बेचने वाली महिला है जो बिरसा मुंडा की परपोती है, जिसे पढ़ने के लिए छात्रवित्ती तक सरकार ने नहीं दी। चाहें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह हों या पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, पीएम मोदी हों या गृहमंत्री अमित शाह सब 15 नवंबर के दिन भगवान बिरसा मुंडा की मूर्ति में फूल चढ़ाएंगे। लेकिन बिरसा के वंशजों को अच्छा जीवन देने के लिए किसी ने प्रयास नहीं किया। बिरसा मुंडा की परपोती कहती हैं की उनको अपने स्कूल में ये बताने में शर्म आती हैं की वो कौन है।

Abhijeet Mishra | रीवा रियासत

Abhijeet Mishra | रीवा रियासत

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