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काकोरी कांड: 100 साल बाद सामने आया अनसुना किस्सा, जानें वो खास राज

Kakori Train Action
काकोरी कांड: 100 साल बाद भी गूंजती है क्रांति की आवाज आज से ठीक 100 साल पहले, 9 अगस्त 1925 की शाम को, कुछ युवा क्रांतिकारियों ने भारत की आजादी के लिए धन इकट्ठा करने के मकसद से एक बड़ा कदम उठाया. उन्होंने लखनऊ के पास काकोरी में एक चलती ट्रेन से सरकारी खजाना लूटने की हिम्मत दिखाई. इस घटना को काकोरी ट्रेन एक्शन के नाम से जाना जाता है. इस साल इसकी 100वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. इस मौके पर इन क्रांतिकारियों के परिवार के सदस्यों ने कुछ ऐसी बातें बताईं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.
क्रांतिकारियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी लोहे की पेटी
स्वतंत्रता सेनानी अशफाक उल्लाह खान के परपोते ने एक खास किस्सा साझा किया. उन्होंने बताया कि जब क्रांतिकारियों को लगा कि उन्होंने लूट को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया है, तो उनके सामने एक अप्रत्याशित समस्या आ गई. जिस संदूक में 4,600 रुपये रखे थे, वह उनकी उम्मीद से कहीं ज्यादा मजबूत था. उन्होंने बताया कि अशफाक उल्लाह खान ने एक हथौड़ा उठाकर दो वार किए और उस लोहे के संदूक को तोड़ दिया. उन्होंने मजाक में अपने साथी शाकाहारी क्रांतिकारियों से कहा था कि "यह ताला तोड़ना पूरी-सब्जी खाने वालों के लिए मुमकिन नहीं था."
4,600 रुपये की वो रकम आज के 11 लाख के बराबर
राम प्रसाद बिस्मिल और दूसरे क्रांतिकारियों के साथ अशफाक उल्लाह खान भी इस कांड में शामिल थे. आज 4,600 रुपये एक छोटी राशि लग सकती है, लेकिन उस समय यह बहुत बड़ी रकम थी. टैक्स लॉयर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष आशीष कुमार त्रिपाठी के मुताबिक, आज के हिसाब से इसकी कीमत करीब 11 लाख रुपये के बराबर हो सकती है. दिलचस्प बात यह है कि लूट की योजना पहले 8 अगस्त के लिए बनाई गई थी, लेकिन बाद में इसे 9 अगस्त के लिए टाल दिया गया था.
काकोरी कांड का रेलवे पर गहरा असर, 90 साल बाद बंद हुई यह प्रथा
इस घटना का असर रेलवे पर दशकों तक रहा. स्वतंत्रता सेनानी रामकृष्ण खत्री के वंशज रोहित खत्री ने बताया कि काकोरी घटना के बाद रेलवे ने लोहे के बक्सों में दैनिक राजस्व ले जाने की प्रथा शुरू की, जो 90 साल से ज्यादा समय तक जारी रही. इस प्रथा को सितंबर 2018 में बंद कर दिया गया था. अब भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारी स्टेशनों से सीधे नकदी लेकर जाते हैं. इस कांड के बाद 1927 में ब्रिटिश सरकार ने राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी थी. साल 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस ऐतिहासिक घटना का नाम बदलकर 'काकोरी ट्रेन एक्शन' कर दिया.




