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Green Hydrogen: ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनेगा भारत, 50 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य

Green Hydrogen: ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनेगा भारत, 50 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य
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What Is Green Hydrogen: भारत सरकार ने यह लक्ष्य रखा है कि अगले 8 वर्षों में भारत 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन तैयार करेगा

What Is Green Hydrogen: भारत सहित पूरा विश्व पेट्रोल और डीज़ल से चलने वाले वाहनों का इस्तेमाल कम करने की कोशिश कर रहा है, अगर कुछ ऐसा है जो पेट्रोलियम ईंधन को रिप्लेस कर सकता है तो वो है ग्रीन हाइड्रोजन, वैसे अब इलेक्ट्रिक कार और बाइक भी बनाने लगी हैं लेकिन बैटरी को पेट्रोल से रिप्लेस नहीं किया जा सकता है।

ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन कहा जाता है और भविष्य में भारत ग्रीन हाइड्रोजन का हब बनेगा। मोदी सरकार ने साल 2030 तक देश में 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने का लक्ष्य बनाया है। नेशनल हाइड्रोजन मिशन (National Hydrogen Mission) के तहत यह पहला कदम है।

भारत सरकार इसके लिए क्या कर रही है

भारत सरकार देश को ग्रीन ईंधन का हब बनाने के लिए बहुत कुछ कर रही है, इसमें सबसे बड़ी भूमिका देश के केंद्रीय परिवहन मंत्री नितीन गडकरी की है। वो वाकई एक दुसरदर्शी नेता है। भारत सरकार ने हाल ही में ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया बनाने के लिए नई पॉलिसी का एलान किया है। इस मिशन के तहत साल 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का प्रोडक्शन करने का लक्ष्य है।

मोदी सरकार का कहना है कि ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया भविष्य के ईंधन हैं. यह फ्यूचर में कोयला, पेट्रोलियम को रिप्लेस कर देगा। ग्रीन हाइड्रोजन बनाने वाली कंपनियां पावर एक्सचेंज से रिन्यूएबल पावर की खरीदी कर सकते हैं. इतना ही नहीं निर्माता खुद का भी रिन्यूएबल प्लांट स्थापित कर सकते हैं।

इसके लिए सरकार कैसी योजना ला रही है

ग्रीन हाइड्रोजन का प्रोडक्शन करने के लिए जो आवेदन देगा उसे 15 दिन के परमिशन मिल जाएगी। 30 2025 के पहले इसकी शुरुआत करने पर 25 साल तक के इंटर स्टेट ट्रांसमिशन ड्यूटी मिलेगी। इसके लिए एक खास वेबसाइट बनाई जाएगी। ग्रीन हाइड्रोजन बनाने वालों को बंदरगाहों में स्थान दिया जाएगा।

ग्रीन हाइड्रोजन क्या होता है कैसे काम करता है

ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा का सबसे बड़ा और शक्तिशाली सोर्स है, इसकी क्षमता पेट्रोल से ज़्यादा होती है और यह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता। इसे रिनुअल एनर्जी से बनाया जाता है, पानी से हाइड्रोजन और ऑक्ससीजन को अलग किया जाता है फिर इलेक्ट्रोलाइज़र का इस्तेमाल होता है, जो रिन्युएबल एनर्जी (सोलर, हवा) का इस्तेमाल करता है।

ग्रीन हाइड्रोजन से कार्बन नहीं निकलता, इसका इस्तेमाल कार, बस, हवाई जहाज, जहाज, रॉकेट में किया जा सकता है। यह कम खपत में ज़्यादा चलता है, पेट्रोल डीज़ल से 3 गुना पावरफुल और अच्छा होता है।

तो अभी तक क्यों इसका इस्तेमाल नहीं होता था

दिक्क्त ये है कि ग्रीन हाइड्रोजन का प्रोडक्शन बहुत महंगा है। पेट्रोल की तुलना में इसका रेट 3 गुना है। ग्रीन हाइड्रोजन 350-400 रुपए किलो के हिसाब से बिकता है। लेकिन रिलायंस, गेल, NTPC, इंडियन ऑयल, एलऐंडटी जैसी कंपनियां इसकी बड़ी यूनिट स्थापित कर रही हैं, जिससे इसका प्रोडक्शन बढ़ेगा तो लागत कम होगी।

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