हजारों से चली आ रही मेले की परंपरा पुरखों की देन है, जो बंद नहीं होनी चाहिए

मकर संक्रांति नजदीक आ चुकी है जिसे लेकर लोगों में उत्साह धीरे-धीरे बढ़ रहा है। तो वहीं दूसरी कोरोना के कारण मेले के आयोजन पर असमंजस की

Update: 2021-02-16 06:42 GMT

हजारों से चली आ रही मेले की परंपरा पुरखों की देन है, जो बंद नहीं होनी चाहिए

शहडोल । मकर संक्रांति नजदीक आ चुकी है जिसे लेकर लोगों में उत्साह धीरे-धीरे बढ़ रहा है। तो वहीं दूसरी कोरोना के कारण मेले के आयोजन पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। जिले के ग्राम पंचायत बरगवां में इस बार मकर संक्रांति पर मेला लगेगा या नहीं लगेगा इस पर अभी विचार चल रहा है। लेकिन सालों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन होगा या फिर इस बार कोरोना की भेंट मेला चढ़ जाएगा।

हालांकि जिला मुख्यालय के बाण गंगा मेले की तैयारी शुरू हो गई है उससे लगता है कि बरगंवा में भी मेला लग सकता है। यहां हनुमान जी का मंदिर है जहां पर लोग स्नान करने के बाद दर्शन करने जाते हैं। इस गांव से सोन नदी निकली है जहां इस नदी के किनारे ही मेला लगता है।

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लोगों का कहना है कि बरगवां का मेला यहां से निकलने वाली पवित्र सोन नदी और सबसे अहम यहां का हनुमान मंदिर है जहां मकर संक्रांति के दिन दूर दूर से लोग अपनी आस्था लेकर पहुंचते हैं और नदी में स्नान कर हनुमान जी के दर्शन कर पूजन करते हैं।

यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और हमारे पुरखों की देन है इसे खत्म नहीं करना चाहिए। यहां के लोगों का कहना है कि मेले से बरगवां की पहचान है जिसे खत्म नहीं किया जाना चाहिए। इस संबंध में रोहित विश्वकर्मा ए रवि मिश्रा ए दीपक तिवारी, अरुण मिश्रा, संजय नापित सहित कई युवाओं और बुजुर्गों ने मेला लगने का समर्थन किया है। बरगवां में तीन दिवसीय मेला लगता है। जिसमे कई बेरोजगारों को कुछ समय के लिए रोजगार तो मिलता है।

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