रीवा: सरकारी जमीन पर करोड़ों का 'खेल', कलेक्टर परिसर में ही बन गया इंडियन कॉफी हाउस, मात्र 5 हजार रुपये किराया
रीवा में सरकारी जमीन पर बने इंडियन कॉफी हाउस को लेकर बड़ा विवाद, करोड़ों की जमीन केवल 5000 रु किराए पर दी गई। कलेक्टर की भूमिका सवालों में।;
रीवा में सरकारी संपत्तियों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का एक बड़ा मामला सामने आया है, जिसने शहर के प्रशासनिक गलियारों में हलचल मचा दी है। चौंकाने वाली बात यह है कि कलेक्टर परिसर के ठीक सामने करोड़ों रुपये की जमीन पर ‘इंडियन कॉफी हाउस’ नामक एक निजी व्यवसाय को चलाने की अनुमति दे दी गई है, और वह भी मात्र 5,000 रुपये प्रति माह के बेहद मामूली किराए पर। यह किराया बाजार मूल्य से कई गुना कम है, जिससे सरकार को सालाना करोड़ों रुपये का राजस्व नुकसान हो रहा है।
मामले की जड़:
सूत्रों के अनुसार, यह पूरा प्रकरण एक बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रहा है। आरोप है कि कलेक्टर की अनुमति से एक निजी बिल्डर को 5,000 वर्ग फुट सरकारी जमीन एक ‘एग्रीमेंट’ के तहत दे दी गई, जिस पर यह कॉफी हाउस बनाया गया है। इस जमीन की अनुमानित कीमत 9 करोड़ रुपये बताई जा रही है। सवाल यह उठता है कि इतनी महंगी जमीन को कौड़ियों के भाव पर किसी निजी संस्था को कैसे आवंटित किया जा सकता है, और इसके पीछे क्या मंशा है?
कलेक्टर की भूमिका पर सवाल:
जनता और विपक्ष दोनों ही इस मामले में कलेक्टर की भूमिका पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। यह बताया जा रहा है कि कलेक्टर ने खुद इस जमीन के आवंटन के लिए एक ‘एग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर किए हैं। यदि यह सच है, तो यह स्पष्ट रूप से हितों के टकराव और पद के दुरुपयोग का मामला है। यह भी जानकारी मिली है कि इस समझौते को बेहद गुपचुप तरीके से अंजाम दिया गया, बिना किसी सार्वजनिक नीलामी या उचित प्रक्रिया का पालन किए।
छिपकर हुई डील, नियम ताक पर:
यह भी सामने आया है कि इस ‘एग्रीमेंट’ के तहत दी गई जमीन का उपयोग होटल के कमरों और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए भी किया जा रहा है, जो कि मूल समझौते के दायरे से बाहर है। इस तरह, सरकारी जमीन का उपयोग निजी लाभ के लिए किया जा रहा है, और नियमों को ताक पर रखकर इसे बढ़ावा दिया जा रहा है।
स्थानीय लोगों में आक्रोश:
इस खबर से स्थानीय निवासियों और व्यापारियों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि सरकार एक तरफ रोजगार के अवसर पैदा करने और सरकारी संपत्तियों का उचित उपयोग करने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ ऐसे मामलों में चंद लोगों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि प्रशासन के इस रवैये से प्रतिस्पर्धा पर भी बुरा असर पड़ रहा है, क्योंकि एक निजी व्यापार को सरकारी संरक्षण और रियायतें मिल रही हैं, जबकि अन्य व्यवसायों को नियमों और उचित किराए का पालन करना पड़ता है।
प्रशासन की चुप्पी और जांच की मांग:
इस पूरे मामले पर फिलहाल प्रशासन की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। रीवा के नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले की उच्च-स्तरीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि इस घोटाले में शामिल सभी जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और सरकारी जमीन को तत्काल वापस लेना चाहिए। यह मामला रीवा में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई का प्रतीक बन गया है, और देखना होगा कि प्रशासन इस पर क्या कदम उठाता है।
भविष्य की संभावनाएं:
यह मामला निश्चित रूप से आने वाले दिनों में और तूल पकड़ेगा। यदि इस पर तुरंत कार्रवाई नहीं की गई, तो यह न केवल सरकारी राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि जनता के मन में प्रशासन के प्रति अविश्वास भी पैदा करेगा। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच अत्यंत आवश्यक है।