रीवा में एलियन जैसा दिखने वाला नवजात चर्चा में: शरीर सफ़ेद, बिना आँख-कान के जन्मा; हालत नाजुक
रीवा के गांधी स्मारक चिकित्सालय में हार्लेक्विन इक्थियोसिस से पीड़ित एक नवजात शिशु भर्ती है. बच्चे को सांस लेने में तकलीफ है और उसकी हालत नाजुक बनी हुई है. यह बीमारी साल में 2-3 मामले ही दिखती है.;
रीवा शहर के गांधी स्मारक चिकित्सालय (GMH) की स्पेशल न्यू बोर्न बेबी केयर यूनिट (SNCU) में एक नवजात शिशु इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. यह शिशु सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग है, बच्चे का शरीर सफ़ेद रंग का है, बिना आँख और कान के पैदा हुआ है, जिसकी वजह से उसकी हालत नाजुक बनी हुई है. फिलहाल, उसे सांस लेने में तकलीफ के कारण ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है, जहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम लगातार उसकी निगरानी कर रही है.
हार्लेक्विन इक्थियोसिस क्या है, जिससे जूझ रहा है नवजात?
नवजात शिशु को जिस बीमारी से जूझना पड़ रहा है, मेडिकल भाषा में उसे हार्लेक्विन इक्थियोसिस (Harlequin Ichthyosis) कहते हैं. यह एक बेहद दुर्लभ आनुवंशिक (जेनेटिक) बीमारी है. इस बीमारी में शिशु के शरीर की त्वचा सामान्य से कहीं ज्यादा मोटी हो जाती है और उसमें जगह-जगह से गहरी दरारें पड़ने लगती हैं, जिससे त्वचा मछली के शल्कों या हीरे के पैटर्न जैसी दिखती है. त्वचा में ये दरारें पड़ने के कारण बच्चे के शरीर में बाहरी संक्रमण (इन्फेक्शन) का खतरा बहुत बढ़ जाता है, क्योंकि त्वचा बाहरी सुरक्षा कवच का काम नहीं कर पाती.
इस संक्रमण को रोकने और त्वचा की विशेष देखभाल के लिए डर्मेटोलॉजिस्ट (त्वचा रोग विशेषज्ञ) की टीम लगातार उपचार कर रही है. यह बीमारी जेनेटिक कारणों से भी हो सकती है और कुछ मामलों में नॉन-जेनेटिक (पर्यावरणीय या अन्य अज्ञात कारणों से) भी नवजात को प्रभावित कर सकती है.
असामान्य शिशु के जन्म से सदमे में परिवार
यह घटना मंगलवार की रात त्योंथर तहसील क्षेत्र के ढकरा सोंनौरी गांव की निवासी शांति देवी पटेल के परिवार में हुई. उनकी बहू प्रियंका पटेल को प्रसव पीड़ा हुई, जिसके बाद उन्हें देर रात चाकघाट स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. बुधवार की सुबह प्रियंका की सामान्य डिलीवरी हुई. डिलीवरी के बाद माँ की हालत तो ठीक थी, लेकिन बच्चा असामान्य था.
नवजात की हालत को गंभीर देखते हुए डॉक्टरों ने उसे तुरंत रीवा के गांधी मेमोरियल अस्पताल के लिए रेफर कर दिया, जहां उसे आईसीयू (ICU) वार्ड में रखा गया है. बच्चे की दादी शांति पटेल ने बताया कि जब उन्होंने पहली बार बच्चे को देखा तो वह उन्हें "बिना आंख-नाक वाला" लगा, और उन्हें समझ नहीं आया कि यह कौन सी बीमारी है. परिवार इस अचानक हुई घटना से सदमे में है और बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है.
दुर्लभ मामला: साल में दो या तीन ही ऐसे केस
हार्लेक्विन इक्थियोसिस के कितने मामले आते हैं? श्याम शाह मेडिकल कॉलेज के बाल्य एवं शिशु रोग विभाग के प्राध्यापक डॉ. करण जोशी ने नवजात शिशु की स्थिति के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि हार्लेक्विन इक्थियोसिस से जुड़े केस बहुत कम देखने को मिलते हैं, आमतौर पर एक साल में ऐसे दो या तीन मामले ही सामने आते हैं. इन बच्चों को विशेष उपचार और गहन देखभाल की आवश्यकता होती है.
डॉ. जोशी ने यह भी बताया कि पीडियाट्रिक (बाल रोग) और डर्मेटोलॉजिस्ट (त्वचा रोग) विभाग के विशेषज्ञ ही इस तरह की बीमारी से ग्रसित नवजात शिशुओं का उपचार करते हैं. इन बच्चों की त्वचा बहुत नरम और संवेदनशील होती है, इसलिए उपचार के दौरान विशेष ध्यान रखना पड़ता है. उन्होंने चेतावनी दी कि कभी-कभी समय पर सही उपचार न मिल पाने के कारण इस तरह की गंभीर बीमारियां जानलेवा भी साबित हो सकती हैं.
डॉक्टरों की टीम जुटी इलाज में
फिलहाल, रीवा के गांधी मेमोरियल अस्पताल में नवजात शिशु का इलाज विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में जारी है. बच्चे को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है और उसे संक्रमण से बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. परिवार और डॉक्टर्स दोनों को उम्मीद है कि बच्चे की हालत में सुधार होगा. यह मामला उन दुर्लभ बीमारियों की ओर ध्यान खींचता है, जिनके बारे में जागरूकता और समय पर चिकित्सा सहायता बेहद जरूरी है.