हीरे चाहिए तो आप भी छानें पत्थर, मध्यप्रदेश के पन्ना में हो रही बारिश

हीरे चाहिए तो आप भी छानें पत्थर, मध्यप्रदेश के पन्ना में हो रही बारिश पन्ना रामभरोसे को किस्मत पर बहुत ज़्यादा यकीन है। इतना कि उसे

Update: 2021-02-16 06:28 GMT

हीरे चाहिए तो आप भी छानें पत्थर, मध्यप्रदेश के पन्ना में हो रही बारिश

पन्ना (विपिन तिवारी) : रामभरोसे को किस्मत पर बहुत ज़्यादा यकीन है। इतना कि उसे आजमाने के लिए वह यूपी के महोबा से मध्य प्रदेश के पन्ना चले आए। कोई काम-धंधा करने के लिए नहीं बल्कि हीरा खोजने के लिए। बेटी की शादी करनी है और उन्हें पूरा भरोसा है कि उनके हाथ हीरा ज़रूर लगेगा और उससे वह बेटी को धूमधाम से विदा करेंगे।
किस्मत का यह खेल पन्ना में न जाने कब से खेला जा रहा है। हज़ारों लोग एक हीरे की आस में जीवन के बरसों-बरस खदानों में कंकड़ बीनने में लगा देते हैं। कीचड़ से सने पांव, चेहरे पर पत्थरों से निकली सफेद धूल की परत और थककर चूर हुआ शरीर, यह पहचान है इन मज़दूरों की। सुबह से लेकर शाम ढलने तक इनके हाथ इसी उम्मीद में चलते हैं कि क्या पता भाग्य किस पल करवट ले जाए। हीरे का एक छोटा-सा भी टुकड़ा इनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देगा। जैसे साल 2018 में कल्याणपुर खदान में ही मजदूर मोतीलाल प्रजापति के साथ हुआ।

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उन्हें खदान से ढाई करोड़ रुपये क़ीमत का हीरा मिला था। पन्ना के इतिहास में यह दूसरा सबसे बड़ा डायमंड है। इससे पहले 1961 में रसूल मोहम्मद नामक शख़्स ने 44.55 कैरेट का हीरा खोजा था। किस्मत बदलने का सबसे ताजा मामला जुलाई 2020 का है। तब रानीपुर गांव के आनंदीलाल कुशवाहा को वह चमकता पत्थर मिला, जिसका मोल था 50 लाख रुपये।
रंक से राजा बनने की ऐसी सैकड़ों कहानियां पन्ना से दुनिया के सामने आती हैं। लेकिन संघर्ष, धैर्य और अथक मेहनत की हज़ारों कहानियां खदानों में दबी रह जाती हैं, क्योंकि इनमें हीरे की चमक नहीं होती। मेहनत, धैर्य और किस्मत के बेजोड़ मेल को देखने के लिए सीधे रुख करते हैं हीरा खदान की तरफ।
यह है भोपाल से तकरीबन 400 किलोमीटर दूर पन्ना ज़िले के कल्याणपुर गांव की खदान। चमकते हीरों को लेकर हमारे मन में एक चमकती छवि होती है, जबकि इसे उगलने वाली धरती पर तस्वीर एकदम विपरीत दिखती है। कल्याणपुर की खदान में दूर-दूर तक मटमैले लाल पानी से भरे गड्ढे और जगह-जगह कंकड़ों के टीले हैं। गड्ढों में पानी भरा गया है ताकि इसमें मिट्टी लगे कंकड़ों को साफ़ किया जा सके। इन्हीं कंकड़ों में से वह चमकता कंकड़ मिलेगा। हालांकि, इन टीलों को देखकर अंदाज़ा लगता है कि काम इतना आसान नहीं।

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यहां रोज़ाना अनगिनत कंकड़ों को उतनी ही शिद्दत से धोया जाता है। जिसकी चाहत है, वह तो नहीं मिलता और कंकड़ों के पहाड़ बनते जाते हैं। यहां रामभरोसे ने हाल ही में क़दम रखा है। उन्हें अपने अलावा बेटी के भाग्य पर भी भरोसा है यानी लेडी लक। दरअसल खदान में महिलाओं की वजह से भाग्य चमकने की कई कहानियां हैं। लोग कई सौ किलोमीटर दूर से आते हैं। कई बार अपनी पत्नी-बेटी के साथ। बेटी की शादी से पहले एक बार हीरा खदान में भाग्य आजमाने का चलन है।
राम भरोसे कहते हैं, 'हम यह मानकर चल रहे हैं कि हमारी मज़दूरी जुगल किशोर जी यानी भगवान के घर में चल रही है। मुझे अपने खदान में काम करने का कोई मेहनताना नहीं मिलता, लेकिन ऊपर वाले के घर में इसका हिसाब रखा जा रहा है।' रामभरोसे की झुग्गी के आसपास घना जंगल है। सांप-कीड़े का डर बना रहता है। खदान में बहुत लोग रहते हैं, इसलिए डर नहीं लगता।
इस परिवार ने अभी संघर्ष शुरू किया है, लेकिन छतरपुर ज़िले के राकेश अहिरवार और लखन यादव बीते तीन साल से हीरे की खोज में हैं। दोनों राजमिस्त्री हैं और खदान पर ही झुग्गी बनाकर रहते हैं। सप्ताह में दो-तीन दिन काम करते हैं और बाकी दिन हीरे की खोज। उनकी खदान के बगल में ही दो साल पहले ढाई करोड़ का हीरा मिला पर किस्मत ने उनके दरवाजे अभी दस्तक नहीं दी है।
राकेश अहिरवार कहते हैं, 'अभी तो बस तीन साल बीते हैं। मैंने लोगों को 20-20 साल इंतजार करते देखा है। लोग हार नहीं मानते, हम भी नहीं मानेंगे।' राकेश की बात सच है। ढाई करोड़ का हीरा पाने वाले प्रजापति ने बताया कि उनके दादाजी और पिताजी जीवनभर खदान में लगे रहे, लेकिन किस्मत अब जाकर खुली।

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कच्चे हीरे का मोल नहीं पन्ना के अधिकतर हिस्सों में हीरा मिलने की संभावना रहती है। ख़ास बात है कि ज़्यादातर खदानों में थोड़ी खुदाई के बाद ही हीरा मिलने लगता है। पहले पथरीली जमीन को फावड़े से खोदा जाता है। फिर छोटे पत्थरों की धुलाई होती है। तीन से चार बार पानी में तेज़ी से खंगालने पर पत्थरों से लाल मिट्टी हटती है। सभी साफ़ कंकड़ों को एक साफ़-सुथरी जगह जमा किया जाता है और फिर उसमें से एक-एक की जांच कर चमकने वाला पत्थर खोजा जाता है।
खदानों को ज़िला प्रशासन से लीज पर लिया जा सकता है। हीरा मिलने पर प्रशासन को सूचना देनी होती है। इसे सरकार के पास जमा किया जाता है। नीलामी के बाद 13.5 प्रतिशत रॉयल्टी काटकर बाकी पैसा खदान मालिक को मिलता है। ऐसी ही एक खदान चलाने वाले पटी गांव के रवि पाठक कहते हैं, 'जब हीरा मिलता है तो उसमें अलग ही चमक होती है। दूध की तरह बिल्कुल साफ। कई बार कंकड़ों के बीच कोई कच्चा हीरा मिलता है, जिसमें दाग होते हैं और कोई मोल नहीं होता। जब भी कच्चा हीरा मिलता है, असली की उम्मीद बढ़ने लगती है।'

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रवि हीरा खोजने के कायदों के बारे में बताते हैं, 'हीरा खोजने की जगह को साफ़ रखा जाता है। रोज़ाना अगरबत्ती लगाकर पूजा की जाती है। वहां नंगे पैर ही जाते हैं।' खदानों में कुछ लोग ख़ुद ही खुदाई करते हैं, जबकि कुछ लोग ठेके पर लेकर मज़दूर रखते हैं। रवि की खदान में काम करने वाली गुलाब बाई की सुबह 5 बजे हो जाती है। काम इतनी मेहनत का है कि चार से पांच घंटे में सिर्फ चंद मुट्ठी कंकड़ ही साफ कर पाती हैं। इसके लिए उन्हें मेहनताने में मिलते हैं 120 रुपये।
गुलाब बाई 20 साल से यह काम कर रही हैं। अपनी खदान लेने के सवाल पर कहती हैं, 'यह किस्मत का खेल है। कभी-कभी पूरा जीवन बीत जाता है और हीरा नहीं मिलता। खदान चलाना हंसी का खेल नहीं। लोग मज़दूरी देते-देते कंगाल हो जाते हैं।' गुलाब बाई ने कई हीरे खोजें हैं, लेकिन वह ठेकेदार का होता है। वह आगे कहती हैं, 'हम आदिवासी हैं और जब भी पन्ना की धरती ने हीरा दिया है, किसी आदिवासी के हाथ ही लगा है। हालांकि किस्मत के हाथों हम मजबूर हैं।'
हीरा खदान का एक स्याह पक्ष यहां से मिलने वाली लाइलाज बीमारियां भी हैं। हीरा मिले न मिले, पत्थरों से निकलने वाले सिलिका के धूल से मज़दूरों को सिलिकोसिस जैसी लाइलाज बीमारियां मिल रही हैं।

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