उत्तराखंड की वीरांगना: तीलू रौतेली की गाथा, पढ़िए जरूरी खबर

उत्तराखंड की वीरांगना: तीलू रौतेली की गाथा, पढ़िए जरूरी खबर(उत्तराखंड से आयशा डंडरियाल) : उत्तराखंड वीरांगनाओं की प्रसूता भूमि रही है।

Update: 2021-02-16 06:27 GMT

उत्तराखंड की वीरांगना: तीलू रौतेली की गाथा, पढ़िए जरूरी खबर

(उत्तराखंड से आयशा डंडरियाल) : उत्तराखंड वीरांगनाओं की प्रसूता भूमि रही है। यहां की वीरांगनाओं ने अदम्य शौर्य का परिचय देकर अपना नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया है। ऐसी ही एक महान वीरांगना का नाम की तीलू रौतेली है, जिनको गढ़वाल की झांसी की रानी के नाम से भी जाना जाता है। मात्र 15 से 20 साल की उम्र में 7 युद्ध लड़ने वाली और रणभूमि में दुश्मन राजाओं के छक्के छुड़ाने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एकमात्र वीरांगना है।

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तीलू रौतेली का जन्म कब हुआ इसको लेकर कोई तिथि स्पष्ट नहीं है, लेकिन गढ़वाल में 8 अगस्त को उनकी जयंती मनाई जाती है और यह माना जाता है कि उनका जन्म 8 अगस्त 1661 को गुराड़ गांव पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। इनके पिता भूप सिंह रावत गढ़वाल नरेश के सेना में थे और माता मैंणावती रानी थी तीलू भगतू और पथ्वा की छोटी बहन थी जिसने मात्र छोटी सी उम्र में घुड़सवारी और तलवारबाजी में निपुणता हासिल कर ली थी.

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15 वर्ष की आयु में तीलू की सगाई इड़ा गांव के सिपाही भुप्पा सिंह के साथ हुई थी इन्हीं दिनों गढ़वाल में कंत्यूरों के लगातार हमले हो रहे थे इसी बीच कत्यूरी राजा धामशाही ने अपनी सेना के साथ गढ़वाल पर हमला बोल दिया.
युद्ध में तीलू के पिता, मंगेतर और भाई मारे गए कुछ ही दिनों में कांडा गांव में कौथिग (मेला) लगा इन सभी से अनजान तीलू भी कौथिग (मेला) में जाने की जिद करने लगी तो मां ने रोते हुए कहा कि तीलू तू कैसी है रे! तुझे अपने भाइयों की याद नहीं आती, तेरे पिता का प्रतिशोध कौन लेगा रे, जा रणभूमि में जा और भाइयों की मौत का बदला ले , ले सकती है क्या!

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फिर खेलना कौथिग (मेला) मां की कही बातें तीलू के मन को चुभ गई और प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी, जिसने तीलू को घायल शेरनी बना दिया था . उन्होंने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर एक सेना बनानी आरंभ कर दी और पुरानी बिखरी हुई सेना को एकत्र करना भी शुरू कर दिया. अपनी बिंदुली नाम की घोड़ी और अपनी दो प्रमुख सहेलियों को साथ लेकर युद्ध भूमि के लिए प्रस्थान किया.

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तीलू ने सबसे पहले युद्ध करके खैरागढ़ को कत्यूरियों से मुक्त करवाया. उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला. इसके बाद वह अपने दल के साथ सल्ट महादेव पहुंची और उसे भी दुश्मन सेना से मुक्त कराकर भिलंग भौंण की तरफ चल पड़ी लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी दोनों सहेलियां इस युद्ध में शहीद हो गई.
युद्ध से विजय होकर जब तीलू रौतेली लौट रही थी तो जल स्रोत को देखकर उनका मन विश्राम करने को किया और कांडा गांव के नीचे पूर्वी नयार नदी में जब पानी पीने के लिए झुकी तभी शत्रु सेना के एक सैनिक रामू रजवार ने निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर वार कर दिया और उनकी मृत्यु हो गई.

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तीलू की याद में आज भी कांडा ग्राम बीरोंखाल क्षेत्र के निवासी हर वर्ष कौथिग (मेला)आयोजित करते हैं. उत्तराखंड सरकार भी हर वर्ष उल्लेखनीय कार्य करने वाली स्त्रियों को तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित करती है.देवभूमि उत्तराखंड की वीरांगना को उनकी जयंती पर शत-शत नमन.

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