जानिए अंतरिक्ष में कैसा होता है जीवन, सुनिए सुनीता विलियम्स की जुबानी

जानिए अंतरिक्ष में कैसा होता है जीवन, सुनिए सुनीता विलियम्स की जुबानी भारतीय मूल की अमेरिकी एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स कभी अंतरिक्ष यात्री

Update: 2021-02-16 06:26 GMT

जानिए अंतरिक्ष में कैसा होता है जीवन, सुनिए सुनीता विलियम्स की जुबानी

भारतीय मूल की अमेरिकी एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स कभी अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना नहीं देखती थीं. वो जानवरों की डॉक्टर बनना चाहती थीं. ये उनका बचपन का सपना था. सुनीता विलियम्स ने बताया कि मैंने बचपन में अंतरिक्ष यात्री बनने की बात नहीं सोची थी. बचपन में मुझे स्विमिंग का बहुत शौक था क्योंकि मैं एथलीट थी. मुझे जानवरों से बहुत प्यार था. इसलिए मैं वेटरनरी डॉक्टर बनना चाहती थी. सच-सच बताऊं तो जिन कॉलेजों में मैं पढ़ना चाहती थी उनमें मुझे दाखिला नहीं मिला. सुनीता विलियम्स ने अपनी जिंदगी से जुड़ी ये सारी बातें एपीजे अब्दुल कलाम सेंटर के सृजन पाल सिंह के साथ हुए एक वेबीनार के दौरान कहीं.

अपनी कहानी सुनाते हुए सुनीता ने आगे कहा कि दाखिला न मिलने के बाद मेरे बड़े भाई ने मुझे रास्ता दिखाया और सुझाव दिया कि तुम नेवी और नेवल एकेडमी के बारे में क्यों नहीं सोचती हो? मैंने भी सोचा कि क्यों न यही कर लिया जाए. इस तरह मैंने नेवल एकेडमी और नेवी को ज्वाइन कर लिया और मैं एक पायलट बन गई. ये मेरी फर्स्ट च्वाइस नहीं थी. मैं डाइवर बनना चाहती थी क्योंकि मैं तैराक थी और जो मेरी दूसरी च्वाइस थी. फिर मैं जेट का पायलट बनना चाहती थी लेकिन मैं हेलिकॉप्टर पायलट बनी. यानी फिर से दूसरी च्वाइस मिली.

शुरुआत में कोलंबिया वाली दुर्घटना

अपने बारे में बात करते हुए सुनीता ने आगे कहा कि मैं नासा में 1998 में आई थी. मैं अंतरिक्ष में 2006 के आखिर में गई. इस बीच मुझे थोड़े समय के लिए स्पेस में जाने का मौका 2002 में मिला. लेकिन दुर्भाग्य से 2003 की शुरुआत में कोलंबिया वाली दुर्घटना हो गई. हमने अपने दोस्तों को गवां दिया. इसमें कल्पना चावला भी थीं. इससे शटल प्रोग्राम को पूरी तरह रोक दिया गया. हम नहीं जानते थे कि अब हम कभी शटल से स्पेस में जा सकेंगे या नहीं और रूसियों के साथ जब हमारी बड़ी अच्छी साझेदारी थी तब ये सब हो गया. सच कहूं तो जब जांच हुई और फिर स्पेस में जाने की हमारी बारी आई. मुझे शटल में जाने के लिए ट्रेनिंग लेने का मौका मिला तब भी लग रहा था जैसे ये एक सपना है.

अपनी अंतरिक्ष उड़ान को लेकर उन्होंने आगे बताया कि हम जब स्पेस क्राफ्ट में दाखिल हुए उस दिन भी वह काल्पनिक लग रहा था जिसका अभ्यास हमने कई बार किया था और वास्तविक नहीं लग रहा था. तब तक नहीं जब तक कि मेन इंजनों को चालू नहीं कर दिया गया. हम जब स्पेस में जाते हैं तब महज 10 मिनट या उससे भी कम समय लगता है 

Railway के Ticket सिस्टम में होगा बड़ा बदलाव जारी होंगे Qr कोड वाले टिकिट

सुनीता विलियम्स ने आगे कहा कि मैंने एक पूरा साल स्पेस में बिताया. हम धरती वाली दिनचर्या वहां भी रखते हैं. हम ग्रीनविच मीन टाइम पर चलते हैं, जो यूरोप का टाइम होता है. इसके दो कारण हैं. इससे हमारे फ्लाइट कंट्रोलर्स को आधे दिन का समय मिल जाता है जो लोग मिशन कंट्रोल ह्यूस्टन में बैठे रहते हैं. आधा दिन मॉस्को के फ्लाइट कंट्रोलर्स को मिल जाता है. यूरोप में फ्लाइट कंट्रोलर्स के लिए सामान्य दिन होता है.आम तौर पर हम लंच अकेले ही कर लेते हैं. 

स्पेस में अपनी दिनचर्या पर बात करते हुए सुनीत ने कहा कि मैं भारतीय खाना खाती थी ऊपर. लेकिन उसे चावल और ब्रेड के साथ. शाम को खाली समय में धरती की तस्वीरें लेती थी. एक्सरसाइज करती थी. क्योंकि शरीर को उस जगह पर दुरुस्त रखने के लिए ये बेहद जरूरी होता है. हमें हर दिन दो घंटे व्यायाम करना पड़ता था ताकि वजन कम हो और हड्डियां मजबूत बनी रहें. हृदय के लिए कसरत करते थे ताकि वह सही ढंग से काम करता रहे. इंटरनेट प्रोटोकॉल फोन होता था जिससे हम अपने घर पर फोन करते थे. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा थी जिससे हम अपने घर पर लोगों को देख पाते थे.

सुनीता विलियम्स ने अपने अनुभव शेयर करते हुए कहा कि हर डेढ़ घंटे में हम धरती का एक चक्कर लगा रहे थे जिससे 45 मिनट दिन होता था. 45 मिनट रात. तो हमने जब हैच को खोला तब रात थी तो मैंने अपने सूट के ऊपर लगी लाइट को जला लिया. और मैं तुरंत काम में जुट जाना चाहती थी लेकिन जब सूरज निकला और मैंने धरती को अपने नीचे घूमते देखा तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं कि ओह माय गॉड... और मैं सोचने लगी कि मैं कहां हूं और क्या कर रही हूं.

ख़बरों की अपडेट्स पाने के लिए हमसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी जुड़ें:

FacebookTwitterWhatsAppTelegramGoogle NewsInstagram

Similar News