Salakaar Review: नवीन कस्तूरिया और मौनी रॉय की स्पाई थ्रिलर क्यों रह गई अधूरी?
नवीन कस्तूरिया और मौनी रॉय अभिनीत स्पाई थ्रिलर 'सलाकार' अपनी कमजोर कहानी और रियलिज्म की कमी के कारण दर्शकों को प्रभावित करने में असफल रही है.;
Salakaar Review
'सलाकार' रिव्यू: क्या यह सीरीज उम्मीदों पर खरी उतरती है नवीन कस्तूरिया और मौनी रॉय की स्पाई थ्रिलर सीरीज 'सलाकार' रिलीज हो गई है, लेकिन यह कहानी दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरती नजर नहीं आती. सीरीज की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी कमजोर कहानी और रियलिज्म पर ध्यान न देना है. यह पांच एपिसोड की सीरीज है, जिसकी कुल अवधि ढाई घंटे है. यह एक फिल्म के रूप में भी बनाई जा सकती थी, लेकिन सीरीज के रूप में यह दर्शकों को बांधे रखने में असफल रही है. 'सलाकार' की कहानी में कुछ नयापन लाने की कोशिश की गई है, लेकिन यह कोशिश असफल रही.
कहानी की दो टाइमलाइन: 1978 और 2025 का मिशन
'सलाकार' की कहानी क्या है? यह सीरीज दो अलग-अलग समय-सीमाओं (timelines) पर आधारित है.
2025 में: रॉ (RAW) एजेंट मरियम, उर्फ सृष्टि (मौनी रॉय), पाकिस्तानी कर्नल अशफाकुल्लाह (सूर्य शर्मा) को परमाणु बम बनाने से रोकने की कोशिश कर रही है. उसकी मदद नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) 'सलाकार' (पूर्णेन्दु शर्मा) कर रहे हैं, जिनका पाकिस्तानी कर्नल के साथ पुराना रिश्ता है.
1978 में: कहानी फ्लैशबैक में जाती है, जहां एनएसए एक फील्ड एजेंट के रूप में पाकिस्तान में था. तब वह अधीर दयाल (नवीन कस्तूरिया) के रूप में जनरल जिया (मुकेश ऋषि) को परमाणु रिएक्टर विकसित करने से रोक रहा था.
इस तरह की कहानी 'मिशन मजनू' और 'रॉकेट बॉयज' जैसी कई फिल्मों और सीरीज में पहले भी देखी जा चुकी है.
कमजोर स्क्रिप्टिंग और रियलिज्म की कमी
'सलाकार' में क्या कमी है? सीरीज की सबसे बड़ी कमी इसका डिटेल पर ध्यान न देना है. आज के दौर में, जब ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रियलिज्म और सटीकता पर जोर दिया जाता है, तब 'सलाकार' 80 के दशक की फिल्मों की याद दिलाती है, जहां रियलिज्म का कोई खास महत्व नहीं था. सीरीज में कर्नल को जनरल के लिए निर्धारित गाड़ियों में घूमते दिखाया गया है, जबकि हाई कमीशन को बार-बार 'एम्बेसी' कहा गया है. सबसे बड़ी गलती यह है कि गुप्त ऑपरेशनों को खुले में अंजाम दिया जाता है, जो एक स्पाई थ्रिलर के मूल सिद्धांत के खिलाफ है.
एक्टिंग कैसी है? नवीन कस्तूरिया का दमदार काम
कलाकारों का प्रदर्शन कैसा है? इस सीरीज की सबसे अच्छी बात नवीन कस्तूरिया की एक्टिंग है. युवा एनएसए के रूप में उन्होंने अपने किरदार को बखूबी निभाया है और यह साबित किया है कि वह एक्शन भी अच्छे से कर सकते हैं. दूसरी ओर, मौनी रॉय का रोल काफी सीमित है. उन्हें एक सक्षम जासूस के बजाय अक्सर एक 'दामसेल इन डिस्ट्रेस' के रूप में दिखाया गया है, जिसे पुरुषों द्वारा बचाया जाता है. इसके अलावा, मुकेश ऋषि ने जनरल जिया के रूप में शानदार काम किया है और वह पर्दे पर menacing (खतरनाक) दिखते हैं. हालांकि, सूर्य शर्मा और अश्वथ भट्ट जैसे प्रतिभाशाली एक्टर्स को ओवर-द-टॉप एक्टिंग करने के लिए मजबूर किया गया है, जो निर्देशक फारूक कबीर की एक बड़ी गलती है.