सरकार अपनी ही करेंसी क्यों गिरा देती है, इससे क्या फायदा होता है, आसान भाषा में पूरा गणित समझ लीजिये

Rupees vs Dollar: इस टाइम इंडियन रुपया अपने सबसे निचले स्तर में है, फिर भी भारतीय इन्वेस्टर्स के लिए यह फायदेमंद है. आज अपन ये जानेगें कि रुपया को डॉलर से ही क्यों कम्पेयर किया जाता है और करेंसी घटती बढ़ती कैसे है, इससे क्या फायदा होता है और नुकसान क्या होते हैं।

Update: 2021-12-18 07:42 GMT

Rupees vs Dollar: इस टाइम इंडियन रुपैया अमेरिकी डॉलर की तुलना में सबसे निचले स्तर में पहुंच गया है, फिर भी विदेशों में इन्वेस्ट करने वाले इंडियन इन्वेस्टर्स के लिए यह फायदेमंद साबित हो रहा है, 1 Dollar की कीमत 76 रुपए के पार हो गई है। आपको यह जान कर निश्चित रूप से बुरा लगता होगा कि बताओ यार रुपए दिन ब दिन टूटता ही जा रहा है। आज अपन रुपए और डॉलर के बीच के कनेक्शन का पूरा गणित समझ लेते हैं और साथ ही अपन ये भी जानेंगे कि सरकारें अपनी ही करेंसी को क्यों गिरा देती हैं, यह फायदा पहुंचता है या इसके नुकसान होते हैं।  

आपको यह जान कर हैरानी होगी कि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ये खुद नहीं चाहता कि रुपए का टूटना थमे, बल्कि सेंट्रल बैंक तो रुपए की वेल्यू को 76.50 रुपए प्रति डॉलर तक देखना चाहता है। ऐसा समझ में आता है कि सरकारें जानबूझ कर अपनी करेंसी विदेशी मुद्रा के मुकाबले कमजोर करना चाहती हैं. भारत सहित तमाम देशों ने ऐसा किया है लेकिन जब उनकी देसी मुद्रा कुछ ज्यादा ही टूट जाती है तो चाह कर भी उसे पुराने लेवल में ले जाना बहुत मुश्किल हो जाता है। 

सीधा सा सवाल है तो क्या रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया रुपए को उठते नहीं देखना चाहता? भारत का निर्यात 1 से 14 दिसंबर के बीच 44.41 फीसदी से बढ़ कर 16.46 अरब डॉलर हो गया है, इतनी बड़ी बढ़ोत्तरी के पीछे गिरता जा रहा रुपया भी है। एक्सपोर्ट बढ़ने से व्यापर घाटे को काबू करने में भी मदद मिली है, इसका मतलब है कि रुपए के नीचे जाने से कभी-कभी देश को फायदा भी होता है। 

टूटता रुपए एक्सपोर्ट को कैसे बढ़ाता है (How Downfall In Rupees Increases Export)

इसको अपन उदाहरण से समझें तो अच्छे से समझ में आएगा 

मान लीजिये कोई इंडियन बिजनेसमैन अमेरिका के व्यापरी को  जूते एक्सपोर्ट करता है. और रुपए की वेल्यू 70 रुपए प्रति डॉलर है, एक जोड़ी जूते की कीमत 1000 रुपए है, अमेरिका का व्यापारी 500 जोड़ी जूतों का आर्डर देता है, और इस हिसाब से 7,142 डॉलर का पेमेंट करता है, एक दिन अमेरिका का व्यापारी बोलता है कि हमको फलाने देश से ज़्यादा सस्ता जूता मिल रहा है, तुमको बेचना है तो दाम कम करो, इंडियन बिजनेसमैन ऐसा करने से मना क्र देता है और अमेरिका उससे आर्डर लेना बंद कर देता है, कुछ समय बात रुपए की वेल्यू घट कर 75 हो जाती है, तो अमेरिकी व्यापारी फिर से माल मांगना शुरू कर देता है। जूते का रेट 1000 ही है लेकिन अमेरिकी व्यापरी को अब 35,714 रुपए सस्ता पड़ता है। यानी के जितना पैसा वो पहले देता था अब उतने में वह 35 जोड़ी जूते और मंगा सकता है। इसके बाद कई अन्य अमेरिकी इम्पोर्टर भी भारतीय एक्सपोर्टर्स को ऑर्डर देने लगते हैं. बाहर से आने वाले महंगे डॉलर पर भारतीय निर्यातक को जो नुकसान हो रहा था, उसकी भरपाई व्यापार बढ़ने से हो जाती है. लेकिन एक्सपोर्ट की मात्रा बढ़ने से पूरी इकनॉमी में असका असर दिखता है. देश का कुल निर्यात बढ़ने लगता है.

व्यापर घाटे का करेंसी से क्या कनेक्शन है (Connection Between Currency And Trade Deficit)

कोई देश बाहर से ज्यादा माल इम्पोर्ट करे और कम माल एक्सपोर्ट करे, तब व्यापार घाटे (Trade Deficit) की परिस्थिति बनती है. आर्थिक भाषा में इसे नकारात्मक व्यापार संतुलन ( Negative Trade Balance) कहते हैं. घरेलू करंसी के टूटने से होने से इस मोर्चे पर थोड़ी राहत मिलती है.अलबत्ता, विदेशी करंसी महंगी हुई तो उनके लिए भारत का माल सस्ता होगा और भारतीयों के लिए विदेशी माल महंगा हो जाएगा. यानी इम्पोर्ट की तुलना में एक्सपोर्ट बढ़ेगा. सरकारी खजाने के मोर्चे पर इससे चालू खाते (Current Account) की हालत सुधरेगी.

लेकिन  जब देश में बाहरी सामान पर निर्भरता बहुत ज्यादा हो जाती है  तो इम्पोर्ट बिल एक सीमा से कम नहीं हो सकता, भारत अपनी जरूरत का 83% कच्चा तेल बाहर से इम्पोर्ट करता है. इसके अलावा मोबाइल फोन, खाने का तेल, दलहन, सोना-चांदी, रसायन और उर्वरक का भी बड़े पैमाने पर इम्पोर्ट  होता है. रुपया कमजोर होने से ये चीजें देश में महंगी हो जाती हैं. लेकिन दूसरी तरफ भारत से बड़े पैमाने पर कल-पुर्जे, चाय, कॉफी, चावल, मसाले, समुद्री उत्पाद, मीट जैसे सामान का निर्यात होता है. ऐसे में रुपया कमजोर होने से एक्सपोर्ट ऑर्डर बढ़ जाता है. ज्यादा निर्यात यानी ज्यादा डॉलर. ऊपर से महंगा डॉलर अंदर आकर ज्यादा रुपया बन जाता है.

RBI रुपया कंट्रोल कैसे करता है (Who Controls Indian Currency) 

भारत में रुपये की वेल्यू सरकार निश्चित नहीं करती. रुपया की वेल्यू पूरी तरह फॉरेन एक्सचेंज मार्केट(Foreign  Exchange Market) के हवाले होता है. डिमांड और सप्लाई की परिस्थिति रुपए की  कीमत तय करती है. हालांकि साल 1975 तक करंसी रेट में सरकार खूब दखल देती थी. जैसा कि चीन सहित दुनिया के कई देशों में अब भी होता है. फिर आरबीआई रुपये को गिराने या चढ़ाने में कैसे कारगर हो सकता है? यह सब कुछ इनडायरेक्ट होता है. , मौजूदा हालात की बात करें तो, पिछले कई महीनों से RBI बड़े पैमाने पर डॉलर की खरीदारी कर रहा है. वह जितना ज्यादा डॉलर खरीदेगा, रुपये पर उतना दबाव बनता जाएगा.रुपए गिरेगा.

RBI  के कुल ऐसेटे्स में विदेशी मुद्रा की साझेदारी तकरीबन  तीन चौथाई होती है. दिसंबर की शुरुआत में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 636.9 अरब डॉलर था. विदेशी मुद्रा भंडार में निर्यात, बाहर से शेयरों और म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट, टूरिस्म  सहित कई सोर्स से बढ़त होती है. लेकिन जब RBI बड़े पैमाने पर फॉरेन करेंसी खरीदने लगता है तो इसे भंडार में  इजाफे के तौर पर देखा जाता है और देसी करंसी कमजोर पड़ती जाती है.

आरबीआई यह भंडार हमेशा के लिए जमा नहीं रखता. मौका पाकर बेचता भी है. आखिर उसकी कोशिश भी आर्थिक गतिविधियों, महंगाई और पैसे के प्रवाह को बैलेंस रखने की होती है. RBI जब विदेशी मुद्रा की बिकवाली शुरू करता है, तब रुपया बढ़ने लगता है. फॉरेक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर आरबीआई ने अभी खजाने में जमा डॉलर बेचना शुरू नहीं किया तो दिसंबर के अंत तक रुपया 77 के स्तर को पार कर जाएगा.

रुपये को नियंत्रित करने के लिए RBI इंट्रेस्ट रेट कोबढ़ा देता है, RBI अपने पॉलिसी रेट (Repo, Reverse repo, CRR) में जैसे ही बढ़त करेगा, ब्याज दरें बढ़ेंगी. फिर करंसी की किल्लत होगी. रुपये की डिमांड बढ़ेगी. यह डिमांड वैसे तो देखने में घरेलू लगती है, लेकिन बाहर से आने वाले निवेश के चलते यह फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में भी रुपये को मजबूती देती है.करंसी मार्केट के जानकारों की मानें तो रुपये के 76.50 के स्तर तक जाते ही आरबीआई हरकत में आ जाएगा और इसे थामने के लिए कुछ कदम उठाएगा। 

हमें उम्मीद है कि आपको रुपए और डॉलर का सारा सिस्टम और गणित समझ में आ गया होगा, जो लोग रुपए की वेल्यू गिरने से सरकार को दोष देते हैं और ये सोचते हैं कि ऐसा होने से देश को नुकसान होता है उन्हें यह आर्टिकल भेज दीजिये। 




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