किसान संगठन जिस MSP गारंटी की मांग कर रहे उससे देश में परेशानियां ही बढ़नी है
अगर सरकार MSP के लिए एक नया कानून बना देती है तो मांग एवं पूर्ति का नियम बेअसर हो जाएगा, इस स्थिति में हमारे देश में क्रेता एवं विक्रेता दोनों की बहुत बुरी हालत होगी।
बहुत समय से देश में कुछ किसान विरोध करते आ रहे है जिसके चलते भारत की केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया। आपको बता दे कि कुछ दिन पहले सरकार द्वारा ये घोषणा की गई कि वो तीनों कृषि कानूनों को वापस लेगी। इसके बावजूद किसान संगठनों द्वारा चल रहे आंदोलन को खत्म नहीं किया गया। अब किसान संगठनों ने भारत की सरकार से MSP(न्यूनतम समर्थन मूल्य) के लिए एक नए कानून बनाने की मांग की हैं। देखा जाए तो MSP को कानूनी दर्जा देना चाहिए। लेकिन तर्क के अनुसार एमएसपी को कानूनी दर्जा देना सरासर अनुचित और अव्यावहारिक है। चलिए एमएसपी से जुड़े कुछ पहलुओं नजर डालें
पहला पहलू:
अगर हमारे देश की सरकार किसी भी तरह की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर देती है और इसके MSP को कानून बना देती तो हो सकता है कि देश के किसान फसल की क्वालिटी पर ज्यादा ध्यान न दें। परिणामस्वरूप न केवल डोमेस्टिक प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज के लिए गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल से संबंधित परेशानियाँ बढ़ेंगी, बल्कि कृषि के निर्यात पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। यह ऐसा समय है जब भारतीय कृषि की को फसलों की कीमतों में बढ़ोतरी करने की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें कृषि में लगने वाली लागत को कम करना चाहिए। ग्लोबल लेवल पर बहुत से देश है जो भारत से सस्ती कीमतों पर अनाज दे रहें हैं।
क्या है दूसरा पहलू:
अगर सरकार MSP के लिए एक नया कानून बना देती है तो मांग एवं पूर्ति का नियम बेअसर हो जाएगा। इस स्थिति में हमारे देश में क्रेता एवं विक्रेता दोनों की बहुत बुरी हालत होगी। किमारे देश के किसान उन फसलों की खेती करने लगेंगे जिन्हें कम मेहनत में उगाया जा सके और लागत भी कम लगे। इस दशा में भारतीय बाजार में कुछ फसले ऐसी होंगी जिनकी मात्रा बहुत बढ़ जाएगी, और उन्हें खरीदने वाला कोई नहीं होगा ?
हमारी सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेकर बहुत अच्छा काम किया है। भारतीय कृषि में वर्तमान हालत की बात करें तो ये अच्छी नहीं है। ज्ञात हो कि देश में होने वाले सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान देखे तो यह सिर्फ 15 प्रतिशत है । दूसरी तरफ कृषि के क्षेत्र पर भारत की आधी आबादी को रोजगार दिलाने का दबाव भी है। हमारे देश में करीब 80 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जिनके पास लगभग दो हेक्टेयर से छोटी जोते हैं। इस दशा में प्राइवेट इनवेस्टमेंट और सहकारिता का फार्मूला इफेक्टिव होगा।