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MP के इस युवक ने 9 साल तक की मेहनत, बना डाली देश की पहली चालक रहित कार

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 5:55 AM GMT
MP के इस युवक ने 9 साल तक की मेहनत, बना डाली देश की पहली चालक रहित कार
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भोपाल। राजधानी के एक छात्र ने देश की पहली चालक रहित रोबोटिक कार बनाई है। 9 साल के लंबे शोध के बाद वह इस कार को सड़क पर उतार पाया है। साल 2015 में पहली बार इस कार का सफल परीक्षण किया गया था।

इस कार से हादसों की आशंका भी ड्राइवर वाली कारों की तुलना में चालीस फीसदी कम होगी, इसके पीछे का कारण यह है कि इंसान ड्राइविंग के दौरान 1 सेकंड में अधिकतम 10 बार निर्णय ले सकता है लेकिन इजाद की गई सेल्फ ड्राइविंग तकनीक के जरिए यह कार 1 सेकंड में 40 बार निर्णय लेने की क्षमता रखती है।

आईआईटी स्र्ड़की से पढ़े संजीव शर्मा ने रोबोटिक तकनीक से सेल्फ ड्राइविंग कार बनाई है। उन्होंने स्वायत्त रोबोट्स नाम से कंपनी बनाकर स्टार्टअप के रूप में इसे शुरू किया है। संजीव के मुताबिक इस तकनीक से टू-व्हीलर वाहन को छोड़कर ट्रक, कार, टैंकर्स जैसा हर वाहन चलाना संभव है। इसके लिए खर्च भी 5 से 8 लाख स्र्पए तक आता है। संजीव इस तकनीक का उपयोग बॉर्डर पर टैंक ऑपरेटिंग और अन्य वाहन संबंधित गतिविधियों में करना चाहते हैं।

इन उपकरणों का होता है उपयोग

रोबोटिक तकनीक में सेल्फ ड्राइविंग के लिए कुल 8 कैमरों की आवश्यता होती है। इसमें 4 कैमरे सीसीटीवी और 4 दूसरे कैमरे लगाए जाते हैं। साथ ही ग्लोबल पोजिशन सिस्टम (जीपीएस), मोटर, कंट्रोलर और तीन कंप्यूटर की आवश्यता होती है।

ऐसे चलती है कार

संजीव बताते हैं कि कार का संचालन पूरी तरह तकनीक पर आधारित है। इसके लिए सॉफ्टवेयर पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की लोकेशन देनी होगी। चलने की कमांड मिलने के बाद कैमरे फोटो लेते हैं और परसेप्शन तकनीक के माध्यम से गाड़ी के आसपास का नक्शा बनाया जाता है। मोशन प्लानिंग से नक्शे के आधार पर कैसे, कितनी रफ्तार और कहां जाना है इसके लिए कंट्रोल कमांड जेनरेट किए जाते हैं। डिसीजन मेकिंग एंड आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस सिस्टम स्थिति को भांपते हुए कार को आगे बढ़ाता है। इतना ही नहीं, भीड़ के आधार पर रफ्तार को भी कंट्रोल करता है। इन सिस्टम को रिसर्च के बाद तैयार किया गया है।

शहर और हाइवे पर अलग-अलग होती है रफ्तार

इस तकनीक को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वर्तमान स्थिति और दर्ज कराई गई लोकेशन के आधार पर शहर को परख लिया जाता है। इसी तरह हाइवे को समझ लिया जाता है। शहरी क्षेत्र में 25 से 30 किमी और हाइवे पर 45 से 60 किमी की गति से कार चलती है। संजीव बताते हैं कि इस तकनीक के जरिए उन्होंने 75 किमी से ज्यादा रफ्तार में बोलेरो को दौड़ाया है।

धीरे-धीरे किया सुधार

नौ साल के शोध के बाद कई बार इसकी टेस्टिंग की गई। वहीं फरवरी 2017 में एक बोलेरो में उपकरण लगाए गए और करीब 500 किमी तक की टेस्टिंग भी की गई। संजीव ने बताया कि फिलहाल तकनीक इतनी विकसित कर ली गई है कि इसे सड़क पर बिना ड्राइवर या व्यक्ति के सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है।

इसलिए देश की पहली तकनीक

संजीव बताते हैं कि रोबोटिक तकनीक से चलने वाली यह कार अपने आप में देश की पहली कार है, जब कार के सामने बाधा आती है तो तब गाड़ी रुकती नहीं, न ही अवरोध दूर होने का इंजतार करती है बल्कि अपना रास्ता बना लेती है। पहले जिन कंपनियों ने देश में ड्राइवर रहित कार को चलाया है उसमें सोनार सेंसर तकनीक का उपयोग किया गया, अवरोध आने पर यह तकनीक निर्णय नहीं ले पाती है कि रास्ता कैसे बनाया जाए।

विदेशों में नौकरी छोड़ सपना कर रहे पूरा

संजीव ने तीन देशों में अलग-अलग विषयों पर शिक्षा पूरी की है। उन्होंने आईआईटी स्र्डकी से इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। इसके बाद इजराइल में एरियल विश्वविद्यालय से मोशन प्लानिंग का कोर्स किया, वहीं कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ अलबेरटा में कंप्यूटर साइंस विषय से एमएस किया। उन्होंने अपना सपना पूरा करने के लिए यूएस के यूएसएमएस विश्वविद्यालय से पीएचडी को छोड़ दिया और भारत वापस आकर रोबोटिक तकनीक से ड्राइवर रहित कार के लिए तकनीक पर काम करना शुरू किया। इस दौरान उन्हें कई मल्टीनेशनल कंपनियों से हाई पैकेज पर नौकरी का ऑफर भी मिला।

इनका कहना है

ड्राइवर रहित स्वचालित कार बिना जीपीएस के चलाना रोबोटिक टेक्नालॉजी से किया जा सकता है। यह कार भी इसी तकनीक पर काम करती है। युवाओं को हमेशा ऐसे नए अविष्कार करना चाहिए जो देश और जनता के काम आ सके। - डॉ. आरके मंडलोई, ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट, एमएएनआईटी

रोबोटिक तकनीक से सेल्फ ड्राइविंग नई तकनीक है। इसके माध्यम से बाधा होने के बावजूद भी गाड़ी अपना रास्ता स्वयं बना लेती है। जिस तकनीक और डिवाइस का इस कार में उपयोग किया गया है, उसके लिहाज से यह अपने आप में पहली कार है। - डॉ. एबी सुब्रमणियम, असिस्टेंट प्रोफेसर, आईआईआईटी दिल्ली

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