अध्यात्म

Sankashti Chaturthi Katha: संकष्टी चतुर्थी 21 अप्रैल को, जानिए इसकी पूजा विधि एवं कथा

Sankashti Chaturthi Katha
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Sankashti Chaturthi Katha (संकष्टी चतुर्थी कथा) : संकष्टी चतुर्थी व्रत 21 अप्रैल को है। आइये जानते है इसके पूजा विधि के बारे में:

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Sankashti Chaturthi 2022 Pooja Vidhi:

  • सबसे पहले सुबह जल्दी उठें और स्नान करें। इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनें।
  • फिर गणपति की मूर्ति को फूलों से सजा लें पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर ही रखें। साफ आसन या चौकी पर भगवान गणेश को विराजित करें।
  • भगवान की प्रतिमा के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित करें और गणेशाय ॐ नमः या ॐ गं गणपते नमः का जाप करें।
  • गणपति को रोली लगाएं और जल अर्पित करें।
  • पूजा के बाद भगवान गणेश को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।
  • शाम को व्रत कथा पढ़कर चांद के दर्शन कर अपना व्रत खोलें।
  • अपना व्रत पूरा करने के बाद दान भी जरूर कर देना चाहिए।

Sankashti Chaturthi 2022 Pooja Vidhi: व्रत कैसे रखें

संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2022) पर कई लोग निर्जला व्रत करते हैं तो कई फलाहार ग्रहण करके उपवास रखते हैं। पूजा के बाद आप फल, मूंगफली, खीर, दूध या साबूदाने का सेवन कर सकते हैं। कई लोग इस व्रत में सेंधा नमक का इस्तेमाल भी करते हैं।

Sankashti Chaturthi Katha In Hindi:

एक बार माता पार्वती और देवों के देव महादेव नदी के किनारे बैठे हुए थे तभी माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की इच्छा जताई। लेकिन परेशानी ये थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो उनके खेल में निर्णायक की भूमिका निभा सके। इस समस्या का समाधान निकालते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी। मिट्टी से बने बालक को दोनों ने आदेश दिया कि तुम इस खेल को अच्छे से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता है। खेल शुरू हो गया जिसमें माता पार्वती लगातार जीत रही थीं। लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। इस पर माता पार्वती को क्रोध आ गया जिसकी वजह से गुस्से में आकर माता पार्वती ने बालक को श्राप दे दिया जिससे बालक लंगड़ा हो गया।

बालक ने अपनी भूल के लिए माता से क्षमा मांगी। बालक के बार बार निवेदन करने पर माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो ने पायेगा लेकिन माता ने उस बालकर को श्राप से मुक्ति का एक उपाय बताया। माता ने उससे कहा कि संकष्टी चतुर्थी वाले दिन पूजा करने यहां पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और व्रत को सच्चे मन से करना।

बालक ने व्रत की विधि जान ली और विधिपूर्वक व्रत को किया। उसकी सच्ची श्रद्धा से भगवान गणेश प्रसत्र हुए और उसकी इच्छा पूछी। उस बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की इच्छा को जाहिर किया। भगवान गणेश ने उसकी मांग को पूरा किया और उसे शिवलोक पहुंचा दिया।

लेकिन वह बालक जब वहां पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले। उस समय माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गयी होती हैं। जब शिव ने उस बालक से यहां आने के बारे में पूछा तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे उन्हें यहां आने का वरदान प्राप्त हुआ। इस बारे में जानकर भगवान शिव ने भी माता पार्वती को मनाने के लिए व्रत को किया जिससे माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश लौट आती हैं।

Sankashti Chaturthi Katha No 2:

एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो।

अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।

विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना पीना अच्छा भी नहीं लगता।

इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद खना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान भी अपनी सहमति दे दी। होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात बल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना आगे भेज दें, तो रास्ता देगी जिससे उनके वाहन धरती धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।

अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अबन क्या किया जाए। तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए। गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन ?

पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले 'श्री गणेशाय नमः' कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया। तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए। हे गणेशजी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो बोलो गजानन भगवान की जय।

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