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Lok Sabha Election 2019: विंध्य में अर्जुन सिंह-श्रीनिवास के बाद गुटबाजी में फंसी कांग्रेस

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:05 AM GMT
Lok Sabha Election 2019: विंध्य में अर्जुन सिंह-श्रीनिवास के बाद गुटबाजी में फंसी कांग्रेस
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रीवा/सतना/सीधी/शहडोल। इसे कांग्रेस का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि बड़े-बड़े नेताओं के बावजूद वह विंध्य अंचल में मजबूती से अपने पैर नहीं जमा पा रही है। कभी अर्जुन सिंह, श्रीनिवास तिवारी, कृष्णपाल सिंह, रामकिशोर शुक्ल, सुंदरलाल तिवारी जैसे कद्दावर नेता विंध्य की पहचान रहे हैं। इसके बावजूद गुटीय राजनीति के चलते कांग्रेस की जमीन कभी उर्वर नहीं हो पाई।

विंध्य क्षेत्र में चार लोकसभा और 30 विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां कांग्रेस की स्थिति कई दशक से खराब है। देश और प्रदेश की राजनीति में यहां के नेतृत्व का भले ही दबदबा रहा, लेकिन लोकसभा हो या विधानसभा, दोनों सदनों के भीतर कांग्रेस का प्रतिनिधित्व कम संख्या में रहा।

देश और प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाने वाले यहां के नेतृत्व में इस समय रिक्तता आ गई है। यही नहीं विंध्य में कांग्रेस की गुटीय राजनीति चरम पर पहुंच गई है, जिसका जिक्र कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लोकसभा चुनाव के लिए बुलाई गई रायशुमारी बैठक में भी किया था। विंध्य क्षेत्र में विधानसभा की 30 सीटें हैं जो परिसीमन के पहले 28 हुआ करती थीं। इसी तरह लोकसभा की भी रीवा, सीधी, सतना और शहडोल सीटें हैं।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ढाई दशक के इतिहास में सबसे अच्छा प्रदर्शन 1998 में रहा था, जब पार्टी ने सर्वाधिक 15 सीटें जीती थीं। इसके बाद 2013 में 11 पर जीत मिली, लेकिन 2018 में कांग्रेस छह सीटों पर सिमट गई। वहीं, लोकसभा में कांग्रेस ने रीवा सीट 1999 में सुंदरलाल तिवारी की जीत के बाद कभी नहीं जीती तो सीधी में 2006 के उपचुनाव में माणिक सिंह जीते थे। शहडोल लोकसभा सीट पर कांग्रेस की राजेश नंदिनी सिंह ने 2009 में तो सतना में 1999 में अर्जुन सिंह की जीत के बाद कांग्रेस कभी नहीं जीत सकी है।

कई गुटों में बंटी स्थानीय राजनीति विंध्य में कांग्रेस के भीतर लंबे समय से गुटीय राजनीति है। पहले अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी समर्थक आमनेसामने होते थे, लेकिन उस दौरान कभी टकराव की स्थितियां नहीं बनी। आज ये दोनों नेता दुनिया में नहीं रहे। इंद्रजीत कुमार और सुंदरलाल तिवारी ने भी विंध्य की कांग्रेस राजनीति के आधार स्तंभ के रूप में पहचान बनाई। इन चारों नेताओं के निधन के बाद अब यहां सर्वमान्य नेता नहीं बचा। इस समय कई गुटों में विंध्य कांग्रेस की राजनीति बंट गई है।

पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह चुनाव हारने के बाद कुछ कमजोर हुए तो पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह का गुट भी मौजूद है। राजेंद्र सिंह के चुनाव हारने से वे भी कुछ हद तक कमजोर हुए हैं। अभी विंध्य में राज्यसभा सदस्य राजमणि पटेल और मंत्री कमलेश्वर पटेल कांग्रेस नेतृत्व के निकट होने से ताकतवर हैं। ये दोनों ही अपने-अपने समर्थकों के साथ खुद को विंध्य में कांग्रेस का नेता मानकर चल रहे हैं। इनके अलावा भाजपा और बसपा से लाए जा रहे नेताओं का अलग से गुट बनता नजर आ रहा है जो स्थानीय कांग्रेस नेताओं के बीच चर्चा में है।

बसपा-सपा के प्रभाव से कांग्रेस को नुकसान कांग्रेस के लिए इस क्षेत्र में आज भी चुनौती कम नहीं है क्योंकि भाजपा ने विंध्य में 1998 के बाद लगातार अपना प्रदर्शन सुधारा और आज भी 80 फीसदी विधानसभा सीटों पर उसका कब्जा है। उत्तर प्रदेश से सटे इस क्षेत्र के कुछ इलाकों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव होने से कांग्रेस के सामने हमेशा मुश्किलें रहीं हैं। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की वजह से विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव कांग्रेस उम्मीदवारों को नुकसान होता है।

सबको साथ लेकर चलने वाले नेता की जरूरत विंध्य में एक समय अर्जुन सिंह-श्रीनिवास तिवारी के बीच मतभेद थे, लेकिन मनभेद नहीं थे। आज भी क्षेत्र में एक ऐसे नेता की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चले। - राजेंद्र सिंह, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष, मध्यप्रदेश

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