मध्यप्रदेश

रसोई गैस देकर गरीब महिलाओं के आंसू पोछ लिये लेकिन महंगाई रुला रही, कैसे कराएं सिलेण्डर रिफिल!

Aaryan Dwivedi
16 Feb 2021 6:39 AM GMT
रसोई गैस देकर गरीब महिलाओं के आंसू पोछ लिये लेकिन महंगाई रुला रही, कैसे कराएं सिलेण्डर रिफिल!
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जब प्रधानमंत्री उज्जवला गैस योजना के तहत लोगों को मुफ्त में गैस मिली तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा है। लेकिन असलियत अब समझ में आ रही जब

रसोई गैस देकर गरीब महिलाओं के आंसू पोछ लिये लेकिन महंगाई रुला रही, कैसे कराएं सिलेण्डर रिफिल!

रीवा। जब प्रधानमंत्री उज्जवला गैस योजना के तहत लोगों को मुफ्त में गैस मिली तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा है। लेकिन असलियत अब समझ में आ रही जब महंगाई में खाली सिलेण्डर घर में रखे हुए हैं और उन्हें रिफिल कराने के लिए लोगों के पैसे नहीं हैं। गैस रिफिलिंग के दाम भी बढ़ गये हैं।

सरकार ने गरीबों को रसोई गैस देकर निःसंदेह उनके आंसू पोछने का काम किया है लेकिन अब रिफिल के लिए 700 रुपये कहां से आयंे। महंगाई से गरीब त्राहि-त्राहि कर रहा है। अंततः उसे कंडे और लकड़ी वाला चूल्हा ही काम आ रहा है। कई ऐसे गरीब हैं जो अपना सिलेण्डर बोरी में भरकर एक तरफ रख दिये हैं। अब सिर्फ दिखाने के लिए है कि उनके घर में भी सिलेण्डर है।

मुफ्त में मिला सिलेण्डर कितना फायदेमंद

लोगों का कहना है कि सरकार ने मुफ्त सिलेण्डर देकर सिर्फ गरीबों का ध्यान भटका दिया है। गरीबों को उससे कोई लाभ नहीं हो सका है। उनका जीवन बिना कंडे-लकड़ी नहीं गुजर सकेगा।

कोई भी व्यक्ति भूख लगेगी तो पहले भोजन की व्यवस्था करेगा, इसके बाद उसके पकाने की व्यवस्था होगी। ऐसे हालात में कोई गरीब मजदूर 300 रुपये मजदूरी करके भोजन की व्यवस्था करेगा कि गैस सिलेण्डर भरवाएगा।

यदि अनाज है तो उसको लकड़ी-कंडे से बिना लागत पकाया जा सकेगा लेकिन गैस के लिए पहले 700 रुपये की व्यवस्था करनी होगी तब भोजन पकेगा और 700 रुपये कहां से मिलंेगे। गरीब के लिए यह टेढ़ी खीर के समान है। गरीब जितने में वह सिलेण्डर भरवाएगा उतने में किताब, कांपी, कपड़े की व्यवस्था कर लेगा।

ऐसे में सिलेण्डर कितना उपयोगी है आप समझ सकते हैं। मुफ्त में दिया गया सिलेण्डर सिर्फ लोगों का ध्यान भटकाने और परेशानी खड़ा करने के अलावा कुछ नहीं है।

जरूरी सामान खरीदें या सिलेण्डर भराएं

कोरोना के कारण लोगों काम-धंधे बंद हो गये। नौकरी छूट गई। लोग डरे-सहमे हैं। ऐसी स्थिति में लगातार बढ़ रही महंगाई से लोग काफी परेशान हैं। दैनिक उपयोग की वस्तुओं की व्यवस्था करने के लिये मशक्कत कर रहे हैं।

ऐसे में किसी तरह काम चलाना पड़ रहा है। जहां दाल, चाल, आटा, गुड़, शक्कर, आलू, टमाटर के दाम आसमान छू रहे हैं तब सिलेण्डर का क्या महत्व है। ऐसे में ग्रामीण कंडा-लकड़ी वाला चूल्हा ही नइया पार लगाएगा।

Aaryan Dwivedi

Aaryan Dwivedi

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