रीवा लोकसभा सीट: यहाँ जबरदस्त 'Fight' है, जनादेश बताएगा कौन यहाँ 'Right' है...

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Update: 2021-02-16 06:04 GMT

विंध्य की राजनीति का केंद्र रीवा संसदीय सीट पर पहला चुनाव 1957 में हुआ. रीवा विंध्य प्रदेश की 4 संसदीय सीटों में से एक रही है. आज यह सीट पूरे रीवा जिले को कवर करती है. यह एक ऐसी सीट रही है जिसपर किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा है. इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी(बसपा) का भी अच्छा खासा प्रभाव है. हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कांग्रेस नेताओं को विंध्य की लोकसभा सीटें जिताने के लिए कहा है, साथ ही उन्होंने कार्यकर्ताओं को फटकार भी लगाईं है. उन्होंने रीवा के कांग्रेस नेताओं को यह तक कह डाला '15 साल के वनवास में नहीं सुधरे तो कब सुधरोगे'.

अगर यहां पर हुए अब तक के चुनावी नतीजों को देखें तो कांग्रेस को बीजेपी और बसपा का मुकाबले ज्यादा जीत मिली है. फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और जनार्दन मिश्रा यहां के सांसद हैं. कांग्रेस को इस सीट पर आखिरी बार जीत 1999 में मिली थी.

राजनीतिक पृष्ठभूमि साल 1957 में यहां पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी. कांग्रेस के शिवा दाता ने यहां पर विजय हासिल की थी. वहीं इसके अगले चुनाव में भी यहां की जनता ने शिवा दाता को एक बार फिर चुना. शिवा दाता यहां पर लगातार 2 चुनाव जीतने वालों में से एक नेता हैं.

1977 के चुनाव में यहां से भारतीय लोकदल का खाता खुला. वहीं साल 1980 में पहली बार महाराजा मार्तंड सिंह निर्दलीय चुनाव जीते. इसके बाद साल 1984 में भी उनको जीत मिली. इस बार वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और जीत हासिल किए थे. साल 1989 में यहां पर जनता पार्टी जीती तो 1991 में यहां पर बसपा की जीत हुई.

साल 1996 के चुनाव में बसपा ने एक बार और जीत हासिल की. लेकिन 1998 के चुनाव में उसकी यह सीट उसके हाथ से निकल गई. बीजेपी के चंद्रमणि त्रिपाठी यहां से सांसद बने. साल 1999 में एक बार फिर यहां पर कांग्रेस की जीत हुई लेकिन साल 2004 के चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस से हार का बदला ले लिया. बीजेपी के चंद्रमणि त्रिपाठी एक बार फिस यहां से सांसद बने. लेकिन साल 2009 के चुनाव में एक बार फिर से यहां बसपा की जीत हुई लेकिन साल 2014 के चुनाव में यहां पर कमल खिल गया और जनार्दन मिश्रा यहां के सांसद बन गए.

रीवा लोकसभा सीट पर कांग्रेस को 6 बार, बसपा को 3 बार और बीजेपी को 3 बार जीत मिली है. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस सीट पर ब्राह्मण चेहरे को मैदान में उतारती हैं. 3 बार इस सीट पर जीतने वाले बीजेपी ब्राह्मण चेहरे के दम पर ही जीती है. रीवा लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. सिरमौर, मऊगंज,रीवा,सेमरिया,देवताबा, गुढ़, तियोंतर, मनगांवां यहां की विधानसभा सीटें हैं. इन आठों ही विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.

2014 का जनादेश 2014 के चुनाव में बीजेपी के जनार्दन मिश्रा ने कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी को हराया था. इस चुनाव में जनार्दन मिश्रा को 3,83,320 वोट मिले थे तो वहीं सुंदरलाल तिवारी को 2,14,594 वोट मिले थे. बसपा के देवराज सिंह इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे थे. वोट प्रतिशत की बात करें तो जनार्दन मिश्रा को 46.18 फीसदी, सुंदरलाल तिवारी को 25.85 फीसदी, देवराज सिंह को 21.15 फीसदी वोट मिले थे.

2009 के चुनाव में यहां पर बसपा को जीत मिली थी. 2014 के चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने वाले देवराज सिंह ने कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी को हराया था. वहीं बीजेपी के चंद्रमणि त्रिपाठी तीसरे स्थान पर थे. देवराज सिंह को इस चुनाव में 1,72,002 वोट मिले थे तो वहीं सुंदरलाल तिवारी तो 1,67,981 वोट मिले थे. वोट प्रतिशत की बात करें तो देवराज सिंह को 28.49 फीसदी, सुंदरलाल तिवारी को 27.83 फीसदी, चंद्रमणि त्रिपाठी को 19.27 फीसदी वोट मिले थे.

सामाजिक ताना-बाना 2011 की जनगणना के मुताबिक रीवा की जनसंख्या 2365106 है. यहां की 83.27 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 16.73 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. यहां पर 16.22 फीसदी लोग अनुसूचित जाति और 13.19 फीसदी अनुसूचित जनजाति के हैं. चुनाव आयोग को आंकड़े के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां पर 15,44,719 मतदाता थे. इसमें से 7,22,919 महिला और 8,21,800 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 53.73 फीसदी मतदान हुआ था.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड 64 साल के जनार्दन मिश्रा 2014 का चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने. पेशे से वकील और किसान जनार्दन मिश्रा ने वकालत की पढ़ाई की है. वे रीवा में ही पैदा हुए. संसद में जनार्दन मिश्रा की मौजूदगी 92 फीसदी रही. उन्होंने इस दौरान 36 बहस में हिस्सा लिया. संसद में उन्होंने 144 सवाल भी किए. उन्होंने फ्लाइट में मोबाइल के इस्तेमाल, क्लाइमेंट चेंज, नए आईआईटी खोलना, जैसे अहम मुद्दों पर सवाल किए.

जनार्दन मिश्रा को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 26.05 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 23.38 यानी मूल आवंटित फंड का 95.53 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 2.67 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.

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