Chhath Puja 2023: कौन है छठी मैया, क्या है छठ पूजा व्रत की कथा, जानिए

Chhath Puja 2023: भारत के कई राज्यों में छठ पूजा बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। आइये जानते हैं इसका महत्त्व और छठ पूजा की कथा (Chhath puja ki katha)

Update: 2023-11-16 11:45 GMT

Chhath Puja 2023: दीपावली के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्र को छठ पर्व (Chhath Parv) मनाया जाता है। देश के कई राज्यों में छठ पूजा (Chhath puja) बड़ी ही श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा व्रत चार दिनों का होता है। इस वर्ष छठ पूजा की शुरुआत 17 नवम्बर नहाए खाए (chhath puja nahay khay) से शुरू होगा। वहीं दूसरे दिन 18 नवंबर को खरना से विशेष व्रत शुरू होगा। पहला अर्घ्य 19 नवंबर को सायं काल में दिया जाएगा तो वहीं अंतिम अर्घ्य 20 नवंबर को सूर्योदय में दिया जाएगा।

छठ पूजा की कथा (Chhath Puja ki katha) और कौन है छठी मैया (kaun hai chhathi maiya)

हमारे सनातन धर्म में होने वाली हर ब्रत, पूजा, कथा, त्यौहार के पीछे कोई न कोई कथा जुड़ी हुई है। छठ पूजा के पीछे भी एक कथा की मान्यता हमारे हिंदू धर्म में प्रचलित है।

कथा के अनुसार बताया जाता है कि किसी युग में प्रियव्रत नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। उनके राज्य में जनता सुखी और संपन्न थी। इसके बाद भी राजा को एक कष्ट सता रहा था। उस कष्ट का कारण था कि उनके कोई संतान नहीं थी। इसकी वजह से राजा और रानी दोनों दुखी रहा करते थे।

बताया जाता है कि संतान प्राप्ति की इच्छा से राजा प्रियव्रत अपनी पत्नी मालिनी के साथ महर्षि कश्यप के पास पहुंचे उनसे उपाय पूछा। जिस पर महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत को पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के लिए कहा। राजा ने विधि विधान पूर्वक यज्ञ करवाया।

कहा जाता है कि यज्ञ के प्रभाव से रानी मालिनी गर्भवती हो गई। 9 माह के पश्चात एक संतान पुत्र पैदा हुआ। देखें वह पुत्र मृत था। जैसे ही इस बात की जानकारी राजा प्रियव्रत को हुई बहुत दुखी हुए।

पुत्र के शौक में राजा ने क्या करने का मन बना लिया। कहा जाता है कि राजा जैसे ही आत्महत्या करने की कोशिश करने लगे उसी समय सुंदर देवी प्रकट हुई। देवी ने राजा से कहा मैं षष्ठी देवी हूं। देवी ने कहा मेरे आशीर्वाद से लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्राप्त होता है। इसके अलावा जो मेरी सच्चे मन से पूजा करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी ने कहा तुम भी पूजा करो तुम्हें भी मैं पुत्र रत्न दूंगी।

इस बात को सुनकर राजा अपनी पत्नी के साथ मिल षष्टि देवी की छठ का पावन पर्व मनाया। माता के प्रभाव से राजा को एक सुंदर पुत्र प्राप्ति हुई। इसके पश्चात राजा सुख पूर्वक रहने लगे और हर वर्ष छठ का पर्व मनाया जाने लगा।

द्रोपदी ने भी की थी छठ पूजा

कई बार द्रोपदी द्वारा छठ पूजा करने का लेख सामने आता है। एक कथा मैं बताया गया है कि कौरव और पांडवों के बीच जुए का खेल हुआ था। जिसमें पांडव अपना सारा राजपाट हार गए थे। ऐसे में उन्हें 11 वर्ष का वनवास 1 वर्ष का अज्ञातवास दिया गया था। बताया जाता है कि इसी दौरान द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। द्रोपदी के छठ माता की पूजा से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों का राजपाट वापस मिल गया था।

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