चाणक्य नीति: मनुष्य की असफलता यह है सबसे बड़ा अवगुण, भलाई के लिए इससे जल्द बना लें दूरी

आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में मनुष्य के जीवन के हर सुखी मंत्र जिक्र किया है। साथ ही उन्होंने मनुष्य के एक अवगुण का भी जिक्र किया है। जो मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु हैं। इसी अवगुण के चलते मनुष्य सफल नहीं हो पाता हैं। तो चलिए जानते है आचार्य चाणक्य किस अवगुण को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं।

Update: 2021-04-02 16:11 GMT

आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में मनुष्य के जीवन के हर सुखी मंत्र जिक्र किया है। साथ ही उन्होंने मनुष्य के एक अवगुण का भी जिक्र किया है। जो मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु हैं। इसी अवगुण के चलते मनुष्य सफल नहीं हो पाता हैं। तो चलिए जानते है आचार्य चाणक्य किस अवगुण को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं।

आचार्य आचार्य ने अपने नीति शास्त्र में ऐसी तमाम बातों का जिक्र किया है। जिन्हें मनुष्य जीवन में अपनाकर उन तमाम अवगुणों में सुधार करके जीवन को सही दिशा की ओर ले जा सकता हैं। ऐसे ही एक अवगुण का आचार्य ने अपने नीति शास्त्र में जिक्र किया है। जो है ईष्या। आचार्य की माने तो यह मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु हैं।

जिन मनुष्य के अंदर ईष्या का भाव नहीं होता है वह जीवन में सफल होते हैं। जबकि जो व्यक्ति ईष्या का भाव मन में रखता है वह न सिर्फ जीवन के अमूल्य समय को नष्ट करता है बल्कि मन, धन एवं शरीर को भी कष्ट पहुंचाता हैं। इसलिए चाणक्य कहते है कि मनुष्य को ईष्या का भाव अपने मन में कभी नहीं लाना चाहिए। यह मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। 

दूसरों के प्रति ईष्या रखने वाला मनुष्य वास्तव में किसी और का नहीं बल्कि खुद का नुकसान करता है। ईष्र्या के कारण किए गए कार्य न सिर्फ समाज में उसकी छवि को धूमिल करता है बल्कि पद-प्रतिष्ठा में भी कमी लाता हैं। इसलिए द्वेष में आकर कार्य करने की बजाय, दूसरों से चिढ़ने व जलन की भाव रखने के बजाय स्वयं की कर्मियों पर मनुष्य को ध्यान देना चाहिए।

उन्हें समय रहते इसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य कहते है कि जिस मनुष्य के अंदर ईष्या के भाव नहीं होते है वह जीवन के हर बुलंदियों को छूने का हौसला रखते हैं। तथा जिन लोगों के मन में ईष्या का भाव होता है जीवन में कभी विकास नहीं कर सकता है। 

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