सुपर स्पेशलिटी अस्पताल रीवा ने फिर रचा इतिहास, एक हफ्ते में दो डबल चैंबर पेसमेकर लगाकर मरीज को नया जीवनदान दिया

रीवा के सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग ने एक बार फिर इतिहास रचा है। एक हफ्ते में दो डबल चैंबर पेसमेकर लगाकर दो अलग अलग मरीजों को हार्ट ब्लॉक से निजात दिलाई।

Update: 2022-06-26 18:08 GMT

रीवा के सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल (Super Specialty Hospital Rewa) के कार्डियोलॉजी विभाग ने एक बार फिर इतिहास रचा है। एक हफ्ते में दो डबल चैंबर पेसमेकर लगाकर डॉ. एस के त्रिपाठी (एसोसिएट प्रोफेसर, कार्डियोलॉजी) ने दो अलग अलग मरीजों को हार्ट ब्लॉक से निजात दिलाई। दोनो मरीज रीवा के रहने वाले हैं और दोनो को ही हार्ट ब्लॉक के कारण दिमाग में खून का बहाव बाधित होता था जिससे चक्कर बेहोशी जैसे हालात बनते थे।

डॉ. एस के त्रिपाठी ने बताया कि अचानक दिल की धड़कन रुकने से उन्हे मृत्यु का भी खतरा था। डबल चैंबर पेसमेकर लगने से अब उनकी दिल की धड़कन कभी कम नहीं होगी और मृत्यु का खतरा भी पूर्ण रूप से टल गया है। इस जटिल प्रोसीजर को करने में कैथ लैब टेक्नीशियन जय नारायण मिश्र, मनीष, सुमन, सत्यम,नर्सिंग स्टाफ, पेसमेकर टेक्निकल सपोर्ट पर्सन पंकज त्रिपाठी की अहम भूमिका थी। इनके बिना प्रोसीजर की कल्पना नहीं की जा सकती।

डबल चैंबर पेसमेकर सिंगल चैंबर पेसमेकर से बेहतर क्यों हैं

अब कई लोगों के मन में यह सवाल जरूर उठेगा की डबल चैंबर पेसमेकर सिंगल चैंबर पेसमेकर से बेहतर क्यों हैं, तो इसका जवाब यह है की डबल चैंबर पेसमेकर दिल की प्राकृतिक धड़कन की तरह ही धड़कता है जबकि सिंगल चैंबर पेसमेकर में मशीन सिर्फ हार्ट के एक चैंबर में धड़कन पैदा करता है जो कि नेचुरल पेसमेकर से भिन्न है। इसी वजह से सिंगल चैंबर पेसमेकर लाइफ सेविंग तो है पर लंबे समय तक इसके पेसिंग से हृदय की पंपिंग कैपेसिटी कम होने का खतरा बना रहता है।

ऐसे जटिल प्रोसीजर के लिए मरीज पहले सिर्फ महानगरों के बड़े हृदय रोग संस्थान पर निर्भर रहते थे पर अब उन्हें किसी भी बाहर के सेंटर में जाने की कतई जरुरत नही है। संसाधनो की भारी कमी के बावजूद हम ऐसे बड़े प्रोसीजर को करने में पूर्ण सक्षम हैं। सरकार और अस्पताल प्रशासन का पूर्ण सहयोग मिले तो हम देश के किसी भी बड़े इंस्टीट्यूट से बेहतर काम कर सकते हैं।

कार्डियक प्रोसीजर की वैरायटी और संख्या में इस समय रीवा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल प्रदेश में नंबर एक है। यह सब बिना कैथलैब टेक्नीशियन, नर्सिंग स्टाफ, और ग्राउंड स्टाफ के संभव नहीं था।

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