इंदौर में ऑनलाइन गेम की लत से छात्र की आत्महत्या, मां के पैसे खर्च होने पर तनाव में था; परिजनों ने नेत्र दान किए
इंदौर में सातवीं के छात्र आकलन (13) ने मां के डेबिट कार्ड से ₹3000 ऑनलाइन गेम पर खर्च कर दिए. माता-पिता की डांट के डर से तनाव में आकर उसने आत्महत्या कर ली.;
इंदौर में एक बेहद दुखद घटना सामने आई है, जहां ऑनलाइन गेम की लत ने एक मासूम की जान ले ली. अनुराग नगर निवासी अंकेश जैन के 13 वर्षीय बेटे आकलन ने गुरुवार रात फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली. वह सातवीं कक्षा में पढ़ता था. इस घटना के बाद परिवार में शोक का माहौल है. परिजन उसे तुरंत अस्पताल लेकर गए, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बाद में, परिजनों ने 'मुस्कान ग्रुप' के माध्यम से उसके नेत्रदान कर दिए.
माता-पिता की डांट का डर बना वजह, ₹3000 खर्च होने पर तनाव
शुरुआती जांच में पता चला है कि आकलन ऑनलाइन गेम का आदी था. उसने गेम में 'लेवल अप' करने और 'डायमंड' जैसी वर्चुअल चीजें खरीदने के लिए अपनी मां के डेबिट कार्ड से कई बार पैसे खर्च किए. इस तरह उसने कुल ₹3000 ऑनलाइन गेम में लगा दिए थे. इस बात को लेकर वह अंदर ही अंदर बहुत तनाव में था कि उसके माता-पिता उसे डांटेंगे.
पुलिस ने बताया कि आकलन एक संयुक्त परिवार में रहता था, जिसमें उसके माता-पिता, छोटा भाई, दादा-दादी और चाचा-चाची साथ रहते हैं. गुरुवार शाम को पढ़ाई करने के बाद, वह दूसरी मंजिल स्थित अपने कमरे में चला गया. रात करीब 8:30 बजे उसके कमरे से स्टूल गिरने की आवाज आई. जब उसके दादा कमरे में पहुंचे, तो उन्होंने आकलन को फंदे पर लटकते हुए देखा. परिवार के सदस्य उसे तुरंत अस्पताल ले गए, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका.
परिवार ने किया अंगदान, मुस्कान ग्रुप के माध्यम से नेत्रदान
इस दुखद घटना के बाद भी, आकलन के परिवार ने एक नेक काम किया है. उन्होंने 'मुस्कान ग्रुप' के माध्यम से आकलन के नेत्रदान कर दिए हैं, ताकि उसकी आंखें किसी और की जिंदगी में रोशनी ला सकें. इस कठिन घड़ी में भी परिवार का यह फैसला सराहनीय है.
मोबाइल एडिक्शन से बच्चों को कैसे बचाएं?
बच्चों में मोबाइल एडिक्शन और गेम खेलने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है, जो एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. एमजीएम (MGM) के मानसिक रोग विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. रमागुलाम राजदान ने इस पर अपनी राय दी. उन्होंने कहा कि बच्चों को धीरे-धीरे इस लत से छुटकारा दिलाना बहुत जरूरी है. बच्चे नादान होते हैं और वे इन दुष्परिणामों को आसानी से समझ नहीं पाते, इसलिए उन्हें प्यार और समय देना बेहद आवश्यक है.
उन्होंने सलाह दी कि बच्चों की मोबाइल की आदत धीरे-धीरे कम कराएं और किशोरों में यह ध्यान रखें कि वे ज्यादा समय मोबाइल फोन पर न बिताएं. डॉ. राजदान के अनुसार, माता-पिता को बच्चों को मोबाइल के दुष्परिणामों के बारे में भी प्यार से समझाना चाहिए, ताकि वे इस लत से बच सकें.