Glaukoma: दिन में सोने की आदत है तो काला मोतियाबिंद हो सकता है

Cataract Cause: काले मोतियाबिंद से हर उम्र के लोगों को रिस्क है, दिन में और दोपहर के वक़्त सोने वालों को ज़्यादा खतरा

Update: 2022-12-04 09:47 GMT

Motiyabind Ka Karan: मोतियाबिंद यह आंख से जुडी बीमारी बहुत कॉमन हो गई है. बढ़ती उम्र के साथ आँखों की दृष्टि कम होने लगती है और रेटिना के सामने सफेद रंग की परत चढ़ जाती है. मोतियाबिंद से भी ज़्यादा खतरनाक होता है काला मोतियाबिंद (Kala Motiyabind) जो एक बार हो जाए तो उसका इलाज फिर संभव नहीं है. मतलब आंखों की रौशनी वापस नहीं लौटती है. काला मोतियाबिंद हर उम्र के लोगों के लिए खतरा है. 

विशेषज्ञों का कहना है कि रात में पूरी नींद न ले पाना, दिन में सोना और सोते वक़्त खर्राटे भरना आपकी आंखों को नुकसान पहुंचाता है. अगर यही समस्या लंबे समय तक बनी रहती है तो ग्लूकोमा यानी काला मोतियाबिंद होने का खतरा बढ़ने लगता है. अगर समय पर इलाज नहीं हुआ तो दृष्टिहीनता हो सकती है 

ग्लूकोमा जरूरी नहीं सिर्फ बुढ़ापे में हो 

ग्लूकोमा आंखों से जुडी ऐसी बीमारी है जिसका सही समय पर इलाज न हो तो आँखों की रौशनी चली जाती है. रिसर्चर्स ने बताया है कि भरपूर नींद न लेने पर यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है. खासकर बुजुर्गों, धूम्रपान करने वाले लोगों को होने वाली यह आम समस्या है. BMJ Open Journal में प्रकाशित एक रिसर्च में 4 लाख लोगों के आंखों की स्टडी की गई है. 

ग्लूकोमा होने से कैसे रोकें 

इस शोध में 40 से 69 साल के लोगों को शामिल किया गया था. इस स्टडी में उन लोगों की नींद की आदतों के बारे में पता किया गया. 2010 से लेकर 2021 तक चली इस रिसर्च में 4 लाख लोगों में से 8690 में ग्लूकोमा की पहचान की गई. आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं ने पाया कि स्वस्थ नींद पैटर्न वाले लोगों की तुलना में खर्राटे और दिन की नींद में ग्लूकोमा का जोखिम 11% बढ़ गया। 

पता चला कि अनिद्रा और छोटी या लंबी नींद लेने वालों में यह जोखिम 13% तक बढ़ गया था। अच्छी नींद न होने से सोचने की क्षमता, स्वभाव, सीखने की क्षमता और याददाश्त पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, 2040 तक दुनिया भर में 11.2 करोड़ लोग ग्लूकोमा से प्रभावित हो सकते है। 

ग्लूकोमा दिमाग के लिए घातक है 

ग्लूकोमा आंख से दिमाग को जोड़ने वाली ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है। इसमें आंख की प्रकाश संवेदनशील कोशिकाओं का क्षरण होता है। सही समय पर इलाज ना होने पर ग्लूकोमा से आंखों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है। 

Similar News